लोकनायक मुरलीधर व्यास स्मृति ग्रंथ | Lokanayak Muraleedhar Vyas Smriti Grantha

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Lokanayak Muraleedhar Vyas Smriti Grantha by भवानी शंकर व्यास 'विनोद' - Bhawani Shankar Vyaas 'Vinod'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सर्वोच्च प्राथमिकता दी | छाभय 24 ब्षों तक यहा रहने पर भी वे अपने छिए काई मकान तक नही बना सके । क्िरायेदार वे! रूप मे वे जगह जगह घूमते रहे कभो दफ्तरियों के चौवा मे रह तो कभी बागडिया के मोहल्ले म॑ रहे कभी बंनीसर कुए पर स्थित किसी मकान म निवास क्या तो कभी सुधारा की बड़ी गुवाड मे आ गये । एक हो मोहल्ले मे दो दो तीन-तीन मकान उहें बदछन पड़े थे। नगर के निवास स्थानों का यह यायावरीय जीवन, यह परिब्रजण, यह बार बार का बदलाव अश्युविधापृण अवश्य था, पर एक सेवाभावी फ्वकड वृत्ति के व्यक्ति के लिए इसके भतिरिक्‍्त और कोई चारा भी तो नही था । वध्[सजी दे जीवन से जन स्वूल के प्रसंग भी अविछि व रूप से जुड़े हुए हैं । जुत स्कूल वे! कायकाल ने उनके जीवन को दा नये माड दिये। एव तो वे उसी अवधि में छोकवेता के रूप म प्रकट हुए और दूसरे उहहान शिष्यो के रूप मे एक ऐसा सभूह पाया जो जीवनभर उनके साथ पाव से पाव मिलावर चलता रहा। ये दोनो बिदु अत्यात मद्त्वपूण है । जन स्वुल मे जब व आय थे उस समय और बाता से अधिक एवं अध्पापत्र थे। पर जैन स्कूछ से जब उ'होन विदा ली तो वे और बाता से अधिक एक लछाोकनेता बन चुके थे 3 अध्यापक से लोकनेता बनने तक की यह अल्पावधि की यात्रा ही उनके जीवन की अत्यत मुखर एवं निर्णायत' मांड सिद्ध हुई पर इससे भी अधिक महत्वपूण बात यह थी कि उनका ठाकनता स्वरूप उनके अध्यापक स्वरूप का साथ छेकर चलता रहा। वे नता होते हुए भी ग्रुर गरिमा से सदा मण्डित रहे | उनके शिष्य उद्े आज भी सच्चे गुर की तरह ही याद करते है) जब शिष्यो की बात छिड ही गई तो व्यासभणी के बारे म॑ किसी शिष्य की इष्टि से ही बात को आगे वढाया जावे। व्यासजो के कई समर्पित शिष्य है-उतम से एक है श्री वालचाद साड । स्मृतिया के वातायन को खालते हुए श्री बालचाद साड ने व्यासनी के वे दिन याद किय जब वे जन स्कूल म शारीरिक शिक्षक थे तथा बच्चो की खेल खेल म॑ राप्टीय विचारधारा से जोडते रहते थे। श्री सा के शब्दो में उन दिनो के इसरे बिखर प्रसंग इस प्रकार है- क्या भूलू क्या याद कर बाली स्थिति आ गई है। उस समय हम वच्चे तो थे ही स्थाभाविक रूप से हमारी रुचि खेलकूद, वबड्डी, साइकिलिंग जखाडेवाजी तरने आदि भ थी। सौभाग्य से श्री व्यासजी शारीरिक शिक्षा के अध्यापक थे। उनकी प्रेरणा से इन सभी क्षेत्रो मं नये नम आयाम खुलने छूगे | हमारी रुचि देशभकित के गीत, नाटक और कविता के प्रति भी उढने लगी ।” एक दृश्य याद आ रहा है--साइकिलिंग म निपुण व्यासजी एकसाथ 13 बच्चो शक्ल अशइयक सऔवफपन्क पके काट्शटी १) ७




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