भक्तामर शतद्वयो | Bhaktamer Shatdvayi
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लालारामजी शास्त्री - Lalaramji Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्तामर-शतडयी ९,
अ००> >कनक-रान +५०-+-० अति म 3-०» -कन»ननमा ये
सनम नमन क+332.. 2 पपनम«म«ष>जनमन न 3 अजज से 3 पनरनाक अफनननन- 2० बस अल + ही बन तल ननन«+बाना विभीनीन-नी--कमन ना विनय “कक >जमन»«-»क,
सबोन विभो ! कथयितु ननु मत्यलछोके
कस्ते क्षमः सुरजुरुप्रतिमा5पि बुध्या ॥ १४॥
अर्थ - हे भगवत आपके केवल शानादिक व्यापक
सबको जानने दाले ) गुण परमोत्कष्ट द अनतदे, आत्मा
के, पत्येक देशमें व्याप्त द्ठ ओर अपने पूर्ण परिच्केदेसे रु
शोमित ६ | हे नाथ ! हे प्रभो ! इस मनुष्य छोकम चाहे
कोई अपनी चुद्धिसे इन्द्रके गुरु चृहस्पतिके समान क्यों
न हो, तथापि चह ध्यपके उन समस्तशणणों को कहने के
लिये कभी समर्भ नहीं हो सकता ॥ १४ ॥
भक्तत्रा तथापि शिवदायक साहशोछज्ञः
स्तोतुं य इच्छति जनः भवनांशहेतेः ।
कल्पान्तकारूपवनाद्ध तनक्रचऋ
सोय॑ तरीतुमभिवांच्छति वान्तसिधुम् १५
अर्थे-तथापि मोक्ष प्राप्त कराने वाले हे भगवन ! जो.
कोई मेरे समान मूर्ख मन्ञुप्प अपने जन्मम्रण रूप संसार
को नाश करने के लिये केवल भक्तिसे ही आपकी स्तुति
करने की इच्छा करता है वह करप कालके अत समयफी
ड
User Reviews
rakesh jain
at 2020-11-24 11:46:03