नियम सार | Niyam Saar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : नियम सार  - Niyam Saar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हुकुमचन्द भारिल्ल -Hukumchand Bharill

Add Infomation AboutHukumchand Bharill

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
यह अनुवाद करने का महान सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ, वह मेरे लिए अत्यन्त हर्ष का कारण है । परम पृज्य सद्गुरुदेव के श्राश्नय में इस गहन शास्त्र का अनुवाद हुआ है । परमोपकारी' सद्गुरुदेव के पवित्र जीवन के प्रत्यक्ष परिचय विना तथा उनके आध्यात्मिक उपदेश बिना इस पामर को जिनवाणी के प्रति लेशमात्र भक्ति या श्रद्धा कहाँ से प्रगट होती, भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेव श्रीर उनके शास्त्रों की लेश भी महिमा कहाँ से श्राती तथा शास्त्रों का श्र्थ खोलने की लेश भी शक्ति कहाँ से प्राप्त होती ? इसप्रकार अनुवाद की समस्त शक्ति का मूल श्री सदगुरुदेव ही होने से वास्तव में तो सद्गुरुदेव की अमृतवाणी का स्त्रोत ही - उनके द्वारा प्राप्त हुआ अमुल्य उपदेश ही - यथाकाल इस श्रनुवाद के ' रूप में परिणमित हुआ है । जिनके द्वारा सिचित शक्ति से तथा जिनकी ऊष्मा से मैंने इस गहनशास्त्र को अनूदित करने का साहस किया था और जिनकी कृपा से वह्‌ निविध्च समाप्त हुआ है, उन पृज्य परमोपकारी सदगुरुदेव (श्री कानजी स्वामी) के चरणारबिन्द में अत्यन्त भक्तिभाव से मैं वंदन करता हूँ 1” गुजराती भाषा के इस अनुवाद के श्राघार पर श्री मगतलालजी जैन ललितपुरवालों ने इस अन्य का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है। उन्होंने सोनगढ़ से प्रकाशित अनेक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया है । | सुपरिचित विद्वान एवं कवि बाबू श्री जुगलकिशोरजी युगल” कोटा ने बहुत लगन के साथ इस ग्रन्थ की मूल गाथाओ्रों का हिन्दी भाषा में पद्मयानुवाद किया है। जिस पद्मानुवाद का प्रस्तुत भ्रकाशन में उपयोग हुआ है । इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट सोनगढ़ से प्रकाशित चतुर्थावृत्ति के संस्करण के आधार पर आॉफसेट पद्धति से हुआ है, अतः ग्रन्थ मूलतः ज्यों का त्यों ही है । प्रकाशन समिति एवं ट्रस्ट के अनुरोध पर सुप्रसिद्ध चिन्तक एवं अनेक मौलिक ऋतियों के प्रणेता डॉ० हुकमचन्दजी भारिल्‍ल ने एक शोध-खोज पूर्ण प्रस्तावना लिखने की क्ृपा की है, जिसमें आचार्य कुन्दकुन्द एवं प्रस्तुत ग्रन्थ नियमसार का प्रामारिणिक परिचय बोघगस्य भाषा में प्रस्तुत किया है। हमें विश्वास है कि इससे विद्वानों के साथ-साथ श्रात्मार्थी मुमुक्षु भाइयों (को - भी लाभ प्राप्त होगा । उक्त सभी महानुभावों के हम बहुत-बहुत आभारी हैं । ' साथ ही श्री बावृभाई चुन्नीलाल मेहता एवं श्री नेमीचन्दजी पाटनी के भी हम हृदय से श्राभारी हुं, जिन्होंने समय-समय पर हमें मार्गदर्शन दिया है । इनके अलावा मुद्रण व्यवस्था में श्री सुरेन्द्रकुमारजी अग्रवाल, दिल्‍ली एवं श्री सोहनलालजी जैन, जयपुर प्रिण्टर्स आदि महानुभावों द्वारा दिये गये सहयोग को भी हम भुला नहीं सकते । - यद्यपि प्रस्तुत प्रकाशन का लागत मूल्य १८) रुपये आया है, तथापि दानदाताओं की मदद एवं स्वयं ट्रस्ट की ओर से २५% कीमत कम करने पर इस ग्रन्थ का विक्रय मूल्य मात्र १०) रुपये रखा गया है; अतः सभी दानदाताओं का भी हम हृदय से आभार मानते हैं। कीमत कम करनेवाले दानदाताओं की नामावली पृष्ठ आठ पर दी गई है । ह ( थ४ )




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now