श्री चतुर्विशति जिनस्तुति व श्री शान्तिसागर चरित्र | Shri Chaturvishati Jinstuti Shri Shantisagar Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीअजितनाथस्तुति । ९
लिये जो जीव इस धर्मको अपने हृदयमें धारण करलेते हैं
वे मोक्षके सुखोंको अवश्य प्राप्त कर लेते हैं ।
भव्यात्मनां नाथ तवेब मूर्तिः
प्रतिक्षणं पृण्यनिवंधिनी च ।
स्वगंप्रदात्री पनपान्यदात्री
पापस्य हंच्री नरकागेला च ॥श॥।
अथ- हे नाथ ! आपकी मूर्ती भव्य जीबोंको प्रतिक्षण
पुण्य उत्पन्न करनेवाली है, सगे देनेवाली है, धन धान्य देने-
वाली है, पापोंकों नाश करनेत्राली है ओर नरककों रोकनेके
लिये अग्रल था बेंडाके समान हैं ।
ते बह्मवेत्ता सममित्रशत्रुः
ध्यानाभिकर्मेन्धननाशकारी ।
त्वमेव मोक्षर्य सुखस्य दाता
मयापि वंद्यो सततं प्रपृज्यः ॥७॥
अथे-- हे भगवन् ! आप परम ब्रक्मके जाननेवाले हैं,
शत्रुमित्र सबकी समान समझनेव्राले हैं, ध्यानरूपी अग्निसे कर्म-
रूपी इंधनको जलानेवाले हैं ओर आप ही मोध्सुखके देने-
वाले हैं इसीलिये हे नाथ, में मी आपकी सदा वंदना ढरता
हूँ ओर सदा आपकी पूजा करता हूं ।
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