भारतीय शिक्षा का इतिहास | Bharatiy Shiksha Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
546
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विपय प्रवेश | ३
इस दृष्टिकोण से शिक्षा मानवन्समाज के पुनम्युत्यान तथा प्रगति--दोनी के लिए
सारपूठ रूप से आवश्यव' है। शिक्षा वे अभाव मे मानव की उपलब्धियाँ सीमित रहेगी
और संस्कृति का विदास नहीं हो सकेगा 1
इस प्रकार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्--व्यक्ति को जीवन के लिए इस प्रकार
तैयार वरना है जिससे उसके हिलो का समाज के हितो के साथ न्यूनतम संघर्ष
हो, और वह समाज के आद्झशों के अनुसार अपने जीवन को व्यतीत कर
सके, साथ ही उन आदर्शों वा उन्नयन करके समाज के स्वस्थ तथा वाछित
विकास में योग प्रदान कर सके ! जैसा कि ससनर ने लिखा है, शिक्षा के द्वारा
>नमनुष्य यह सीखता है कि कौन-सा आचरण समाज के द्वारा स्वीकृत अथवा अस्वीकृत
है, किस प्रकार के मनुष्य का सबसे अधिक समादर होता है, सब प्रवार के कार्यों मे
छसे किस प्रकार का व्यवहार बरना चाहिए, और उसे किस बात में विश्वास अथवा
अविश्वास करना चाहिए |”? इस अर्थ में कहा जा सकता है कि शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ
कत्तव्य व्यक्ति का समाजीवरण करना है । इस दृष्टिकोण से शिक्षा को प्रमुख समस्या
है--वालक के उन जन्मगत आवेगो (1२७४० एगाए0७७५) का किसी प्रकार दमन
करना जो तत्कालीन सामाजिक आचरण से भेल नही खाते है, अथवा इन आवेगो को
प्रवृत्तियों (7६४0८४०८४) मे परिवर्तित करना जिससे व्यक्ति का सम्य समाज की
रीतियो, आदर्शों तथा सस्थाओ से सामजस्य हो जाय ।*
ओशिया (0'!$864) का उपगुक्त उद्धरण हमारे समक्ष यह प्रश्न उपस्थित
करता है बि--शिक्षा का उदृश्य क्या होना चाहिए ?” इस सम्बन्ध में नन (रण)
का मत है कि शिक्षा का बोई भी सा्वभौमिक उद्देश्य नही हो सकता है। शिक्षा का
प्रयास यह होना चाहिए कि वह व्यक्ति के लिए उन अवसरों को जुटाये जिससे उसके
व्यक्तित्व का सर्वाद्भीग विकास हो सके । अन्य अनेक सुविख्यात शिक्षाशास्त्रियों का
भी यही मत है। परन्त वास्तविक रूप मे शिक्षा का यह उद्देश्य हृष्टिगत नही होता
है । घेंकटारायप्पा ने ठीक ही लिखा हे ---/शिक्षा का उद्देश्य--युवको को सामाजिक
मूल्यों, विश्वासा और समाज के प्रतिमानो को आत्मसात् करने के लिये तैयार करना
ओर उनको समाज वी क्रियाओं मे भाग लेने के योग्य बनाना है ४ 3
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