जय - दोल | Jay - Dol

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Jay - Dol by अज्ञेय - Agyey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देखता हूँ, तो दिन-भर अनमना-सा रहता हूँ, यवा पूछ-पूछ कर तग कर देती हे कि क्यों ? पर मेरा दिन अच्छा नही बीतता ' 'सॉप अनिष्द है।** क्यो उस ने मेरे मन को ठीक वैसे ही घेर कर वॉध लिया है जैसे वह उस फल देनेवाले पेड़ को अपनी गुजलक में कसे रहता है ? क्यों मेरा मन या तो सोच ही नही सकता, या सॉप के दवाव के अनुसार ही सोच सकता है ? वह मुझे देख कर हँसता है। उस की हँसी मे कुछ ऐसा होता हैं. जो कांटे की तरह सालता है। वह बताना चाहता है कि वह मुझ से अधिक जानता है, मुझ से अधिक समर्थ है, मुझ से अधिक पराक्रमी है। किन्तु मै तो यवा को देख कर यवा को दर्ठ पहुँचाने के लिए कभी नही हेंसा हूँ ? यवा भी तो बहुत-सी बाते नही जानती जो मैं जानता हूँ, यवा से भी तो बहुत-से काम नही होते जो मैं कर सकता हूँ । यवा मेरे साथ रहती है । यवा मेरी है । मैं उसके लिए फल लाता हूँ, मैं उसके लिए फूल तोड कर विछाता हूँ । मै अपने मुँह मे पानी लेकर एक-एक घूंट उस के मुँह में छोड़ता हूँ । मुझे इस मे सुख मिलता है कि जो काम मैं करता हूँ वे सब के सब यवा न कर सकती हो। मुझे इस में भी सुख मिलता है कि जो काम वह कर भी सकती है, वे भी मेरी मदद के विना न करे । यवा मेरी है। साँप तो मेरा कोई नही है ? उस का दिया हुआ तो मै कुछ लेता नही ? एक फल दिखा कर कभी वह बुलाया करता है, कभी डराया करता है, कभी तिरस्कार से हँसता है, पर मैंने तो वह फल कभी चाहा नही है, मैने तो उस की ओर देखा भी नही है, मैने सॉप की वुलाहट की अनसुनी ही सदा की है, तव वह क्यो हँसता है ? में सॉप का नही हूँ, बया इसीलिए वह हँसता है ? यदि मै भी उस का होता, जैसे यवा मेरी है, तव क्या वह भी मेरी कमजोरी मे सुख पाता. क्या: वह अपनी लपलपाती हुई जीभ से चाटा हुआ पानी मुझे” पर उह ! मै नही चाहता वह ! लेकिन सॉप हँसता था और कहता था, मै उस का हूँ । कहता था जब तुम वने भी नही थे, तव से तुम मेरे ही थे, जब तुम नही रहोगे, ततब्र भी आदम की डायरी / 27




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