विद्यापति की पदावली | Vidya Pati Ki Padavali

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Vidya Pati Ki Padavali by श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी - Shriramvriksh Benipuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय ४३:७७ प्टर्तछ रख प्राप्त हुआ था, वद माता भी धन्य है, विन्दरोंगे ऐसे पुरुषरतय फो अपने गर्भ में धारण किया था। विसपी साँव फी प्रस्केफ फणा पुययमप और धन्य है, जहाँ ऐसे कविकोकिक्ष ने अपना जीवए ब्यतीत किया था। फह्ा माता है, गणपति ठादुर ने कपिक्ेश्वर महादेव फी धाराधता करझे विद्यापति ऐसा पुत्र रतन प्राप्त किया था 1 विदापति ने सुप्रत्तिद्ध हरिमिश्न से विद्याध्ययन शिया था प्रोर उनके भतीजे सुख्यात पक्षघर प्रिथ एहनके सहृपादी थे । विद्यापति झपने पिता के खाथ राजा गणेश्वर के द्रयार में बचरत से दो झाया जाया करते थे। गरणेश्वर के बाद फौत्तितिद राजा हुए। विद्यापति राश कीत्तितिंद फे दरयार में भाने जाने बागे। प्रारम्भ से ही इनमें प्रतिभा की हाल्कक दौस़ पद्ती थी | राणा फीत्तिसिद के दरबार में, सालूम दोता है, ये कुछ भषिक का तक रहे द्वोंगे | क्योंकि इहटीं राजा पीजशिसिंद के नाम पर इन्होंने अपना पदला ग्रन्थ 'कात्तिक्नता का निर्माण किया था। यह पूरी पुस्तक नंपाज्ष फे राज-पुस्तकालय में है | मिधिक्षा में हूस भन्‍्य का क्षेवस्त फुयकर अश मिलता है। 'कीत्तिज्षता' कवि के तरुण वयघ की रचना हैं | इस मनन्‍्ध की भाषा सस्कृत, प्राकृत मिप्चित मैथिन्नी ?ै। फवि ने इस भाषा का नामकरण “भवद्ट्ट! भाषा पफिया है। 'कीत्तिल्ता! के प्रथम पदल्नय में कत्रि ने रपय कहा - देसिल बश्मना सब जन मिंद्ठा। ते तेसन जम्पओओ अवबधहद्ा॥ देशी भाषा सभी. को सीडी क्षयती है, धट्टी जानकर पश्रवदद्ठ भापा में इधकी मैंने रचना की है ।' कितु इस पुस्तत फो रचना के समय, मालूम द्वोता है, कवि भपनी काम्य-कुशलता के क्षिये श्र




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