सबद निरन्तर | Sabad Nirantar

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Sabad Nirantar by रमेश चन्द्र शाह - Ramesh Chandra Shah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का बीडा उठाने का सवाल है, यह उतना ही हास्यास्पद है जितना पशुओ में फ्ले रोग की रोकथाम के लिये फौज बुलाने की सोचना ।” बात दरअसल यह है कि, डिवेस की करुणा और डिकेस का मुस्सा दोना ही समकालीन समाज की एक मानसिक ज़रूरत वी पूर्ति करते थे। सामाजिक समस्याआ के प्रति हजारा लोगों के भाव सवेदनात्मक दृष्टिकोण को उसमे गहरे म प्रभावित किया। एक घम प्रचारक ने तो यहाँ तक वह दिया कि “आज हमारे बीच कुल तीन ही सामाजिक प्रेरणा देने वाली शक्तिया हैं. एकतो लद॒न सिटी मिशन, दूसरे हैजा और तीसरे डिकेस महाशय वे उपयास ।/ मगर यदि कोई पूछे कि क्या डिवेस के उपयासा के जरिये सामाजिक परि- वतन थी दिशा मे कुछ ठोस नतीजे निकले ? क्या उसके दृतित्व से सीधी प्रेरणा ग्रहण करके कोई सुधार वास्तव मं हुआ --- तो इस सवाल का जवाब एक निश्चित 'हाँ म नही दिया जा सकेगा। दरअसल जहां तक युगीन समस्याओं की बौद्धिक पकड का प्रश्न है, डिकेस के विचार उन विचारा से अलग या आगे नही थे जो कि उसके समय मे क्मजीवन से प्रत्यक्ष रूप में जुड़े लोगो वे पास भीधथे। इसलिये डिकेत्स ने इसमे कोई पहल वी हो, ऐसा नही कहा जा सकता । इसके अलावा जिन ठोस समस्याओं को लेकर उसने अभियान चलाया था, उनका भी हल निकालने भ उसे सफ्लता मिली हा ऐसा नही लगता । डिकेस के जीवनकाल मे (सन्‌ 1832 और सन्‌ 1870 के बीच) इग्लैंड म सामाजिक परिवतन वी गति चाहे जितनी तज रही हो, सुधार वी गति बहुत घीमी थी। यहाँ तक दि 'पुअर ला' जसी अपेक्षाहइत सहज साध्य चीज भी +- जिस पर डिवे-स ने लगातार आपत्ति उठायी उसे भी सशोधित करन का कोई भम्भीर प्रयत्त उसके जीवन काल म नही हुआ । सन्‌ 1905 मे जब रायल कमीशन की नियुक्ति हुई, तभी इसकी नौबत आयी । इसी तरह ऋण न चुका पाने के लिए वारावास के दड की प्रथा का अत भी बहुत बाद में जाकर हुआ -> सन्‌ 1869 मं । सावजनिक स्वास्थ्य सम्बधी सुधार भी दरअसल डिकेस की मृत्यु के उपर ही लागू क्या गया । दफ्तरशाही की डिकेसीय आलोचना भी उसके जीवनकाल मे रग लायी हो, ऐसा नही कहा जा सकता 1 वयाकि सिविल सविस का पुनगठन ही सन्‌ 1870 मे जावर हुआ शिस्षा के मामले मे भी डिकेस आजीवन जिस एक राष्ट्रीय योजना की पुरणोर वकालत करता रहा था, वह भी उसके जीवन काल म चरिताथ नही हो सकी | इन सारे तथ्यों को देखते हुए यह स्पप्ट है कि डिवेस के उपयासा का अगर कोई सीधा और तात्वालिक प्रभाव सामाजिक परिवतन के क्षेत्र म पडा भी हो तो वह नगण्य ही है। यह भी सच है कि शासन-कर्मी तथा राजनीतिज्ञ उसकी साहित्य और सामाजिक परिवतन दुछ विचारणीय मुददे 27 कफ.




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