ऋग्वेद - संहिता भाषा - भाष्य भाग - 5 | Regved - Sanhita Bhasha - Bhashya Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
848
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २३ )
पशञ्चमोष्ध्यायः
सू० [ ६८ ]--ईश्वराराधना, उसकी स्तुति और आर्थना । सशष्टिकर्ता
का घुना पुनन सतन | (२) विश्व का विस्तारक परमेश्वर । (३ )
चलशाली । ( ४-५ ) राजा का वर्णन । ( ६) सबलोक-पति अभ्ु
(७ ) अजाओं का स्वासी अझ्ु। (८) अपार इक्तिशाली अभु |
€ ९-१३ ) उसकी रतुति और प्रार्थनाएं । ( १४ ) भात्मा के ६ नर
६ इन्द्रिय गण। ( १५ ) अश्वमेघ-राष्ट्रशासनवत् देहव्यवस्था 1 ( १६ )
+<ईंष्ट्र में उत्तम वीरों की नियुक्ति । ६ सेनापतियों की नियुक्ति | वधूमान्
अश्वों का रहस्य । अध्यात्म व्याख्या | देह सें चाणीवद् राष्ट्र मे राजसभा
का रूप। ( १९ ) नियुक्त जनों को उपदेश कि कोई भी निन्दुर्नीय
कर्म न करें 1 ( ए० ६३८-६४४ )
स्० [ ६९ ]<राष्टर के अजाजनों के कत्तेव्य । (३-४ ) प्रजाओं
द्वारा उत्तम शासक की स्थापना । (६ ) वेद॒वाणियों द्वारा अतिपादित
परमेश्वर सधुर रसवत् रूप | पाप्त पद सखावत् अश्ठु का मोक्ष सुख का
पद । सखा अझ्ु । ( ८ ) अभ्ु की अचना का उपदेश । ( ९ ) विद्वान
का अजाजनों को उपदेश | ( १० ) यौओंवत् प्रजाओं का रूप। राजा
का भज्ञा के अति कत्तेव्य । वरण योग्य राजा वरुण । ( १२ ) वरुण
आचार्यवत् 1 उत्तम नायकव॒त् भवबन्धन सोचक अभ्भु । (१४) पक्कत ओदन
के तुल्य शिप्य का गुरु से क्ञान अहण । राजकुमार के रथारोहणवत् ।
राष्ट्शासन पद का भआरोहण, और जीव का ब्रह्मपद-आरोहण ।
( १६ ) ग्ृहपति का ग्रहस्थ रथ पर जारोहण । राजा-राष्ट्र का दुग्पति
भावों | ( १७ ) राजतन्त्रवत् अध्यात्मखराद की उपासना । खेती करने
के तुल्य देंह से कर्मफल आप्मि 1 ( ४० ६४७५-६७३ )
स्० [ ७० ]|--सवॉपरि वायक शासक का वर्णन ! प्रश्न परमेश्वर
की ग़ुण-स्तुति 1 (५) पक्षान्तर में वीर पराक्रमी शासक का वर्णन ।
उसके कत्तेच्य ! ( १० ) पितावत् अश्चु | हुए.्ट दसनकारी वा राजा।
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