श्रीमद्वाल्मीकि रामायण भाग - 9 | Shrimadvalmiki Ramayan Bhag - 9

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Shrimadvalmiki Ramayan Bhag - 9  by चतुर्वेदी द्वारिकाप्रसाद शर्मा - chaturvedi dwarikaprasad sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्तरकाणठ-पूर्वाह्ल की विषयानुकमणिका प्रथम सगे १-९ शीरामचरद जी के गद्दी पर बैठ चुकने पर उनकी वधाई देने के लिये पूर्व विशादि चारों दिशावासी कौशकादि मदर्षियों का प्रागमन । भीरामद्वारा उनका पूजन । ऋषियों द्वारा भौरामचन्द्र जी की प्रशंसा। ऋषियों के मुख से इद्धज्ञीत की प्रशंसा छुन भीरामचन् जी का पिस्मित होना । साथ ही उसके प्रभावादि सुनने के लिये भीराम- चन्द्र ज्ञी का उत्छुकता प्रकट करना । दूसरा सर्ग १०-१७ उत्तर में ग्रगस्य जी द्वार रावण के पितामद पुल्तस्य जी की कथा का वर्णन । विश्ववा की उत्पत्ति तीसरा सर्ग १७-१५ रावण के पिता विधवा की तपश्चर्या। विधवा के भरद्वाज़ का धपनी कन्या देना । इन दोनों से वैश्ववण को उध्ति | विश्रवा द्वारा वैश्रवण का रहने के लिये, निक्ूंट- पर्वतशिखर-स्थित लड्ढा का वतलाया जाना | वैधवण की. ' ल्लाकपाल पद्‌ पर नियुक्ति, देवत्व प्राप्ति पव॑ सवारों के लिये पुष्पकविमान की उपलब्धि | चौथा सगे २५-३३ क्ड्ढा निर्माण के सम्रय ही से छड्ढा में ग्षसों की श्रावादी का वृत्तान्त छुन, भीराम्रचद्ध जी का




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