निबन्ध - कला | Nibandh Kala

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Nibandh Kala by राजेन्द्रसिंह गौड़ - Rajendrasingh Gaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निबन्ध-कला ११ होता है। भाषा के विकास में साहश्य और औपम्य अथवा उपचार का भी हाथ रहता है । हमारी भाषा के बहुत से शब्द इसी प्रकार बने हैं। ऊपर की पैंक्तियों में, भाषा के विकास की जो 'रूप-रेखा अंकित की गयी है उससे यह न समभाना चाहिए कि उसका कोई नियम ही नहीं होता । भाषा- शात्रियों का कहना है कि भाषा के विकास में कोई-न- कोई नियम अवश्य काम करता है । यदि ऐसा न हो, तो भाषा का रूप विकृत हो जाय; और एक मनुष्य की भाषा दूसरा मनुष्य समक् न सके । व्याकरण ऐसे ही नियमों का पता लगाता है । बैयाकरण किसी विशेष भाषा के अध्ययन से उन समस्त नियमों का पता लगता है जो भाषा के विकास में अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करते रहे हैं। वह ऐसे नियमों का संकलन करता है, और उन्हें प्रकाश में लाकर भाषा सीखनेवालों का मार्ग सरल कर देता है। इस प्रकार, व्याकरण भाषा की गति-विधि पर अनुशासन करने लगता है । इसमें सन्देह नहीं कि भाषा के पश्चात्‌ » उसका व्याकरण बनता है; परन्तु इससे उसका महत्त्व कम नहीं होता । व्याकरण राजा है, भाषा उसकी प्रजा है । भाषा एक प्रकार से व्याकरण के अधीन रहती है । व्याकरण महावत है; भाषा मस्त हाथी है। महावत न होने से मस्त हाथी की जो दशा होती है; सरकार न होने से प्रजा की जो दशा होती है वही दशा व्याकरण के अभाव में भाषा की भी हो जाया करती है। व्याकरण का उद्दे जय केवल भाषा को संयत करना है। परन्तु जैसे संसार के सभ्य देशों में शासन की समस्त शक्ति श्रजा के हाथ में चली गयी है अथवा जा रहा है; वेसे ही श्रेष्ठ साहित्यकारों के, अतः भाषाओं के, जीवन में भी व्याकरण का बन्धन दिन-दिन शिथिल होता जा रहा है। भाषाओं में पारस्परिक सम्बन्ध, आदान- प्रदान, युद्ध, तथा राजनीतिक कारणों से परिवर्तन इतनी तेजी से होते हैं कि भाषा और व्याकरण




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