महामात्य चाणक्य | Mahamatya Chanakya

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Mahamatya Chanakya by श्री शरण - Shree Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महामात्य चाणक्य 25 सेवकों मे महाराज के आदेश का पालन किया । उस कुरूप ब्राह्मण की बघी हुई शिखा खुल गई । उसका काला चेहरा ऋोध से तमतमा उठा, तेज स्वर में बोला, 'अब यह शिखा उसी समय चपधेगी जबकि मैं नववद वश का नाश कर डालूगा 1 इतना कहकर वह एक ओर को बढ गया 1 महाराज ने भी उस छुरूप ब्राह्मण के अभिशाप को सुना और क्रोध थीकर रह गए । सात इस घटना को कई मास बीत गए 1 महाराज के थुप्तचर बूढे शक्टार और उस दुरूप ब्राह्मण को खोजने मे असफल रहे । कोई ने कोई पद्टयन्न रचा जा रहा है, ऐसा उ्हें आभास होने लगा था । एक दिन महाराज और महामात्य महू॒पि कात्यायन विचार मुद्रा में बैठे हुए भे । सहसा महा- राज के मुख से निकला, “हमारे गुप्तचर एक बूढ़े को खोजने मे असफल रहे यह कैसी बिडम्बना है “महाराज ! शकटार अपने राज्य में हांते, ता अवश्य मित्र जाते । वे कही दूर निकल गए हैं, इस राज्य की सीमा से ।! महूधि काल्यायन ने कहा। हूं । महाराज वे सुख से निकला ! “यह भी अच्छा नही हुआ महाराज ! महधि कायायन बोले । क्या, ऋषिवर ?' भहाराज ने उत्सुकता से पूछा 1 महाराज । शकटार इस राज्य के हितंपी थे 1 वे सदा इसके हिल में ही सोचते पे ।/ महपि कात्यायन ने कहा, 'उद्े महामात्य के पद से हटा कर एक साधारण से मत्री का पद देना, क्या ठीक था ”' “आप ठीक कहते हैं, ऋषिवर ! महाराज ने दिन्न स्वर में कहा,




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