महामात्य चाणक्य | Mahamatya Chanakya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महामात्य चाणक्य 25
सेवकों मे महाराज के आदेश का पालन किया ।
उस कुरूप ब्राह्मण की बघी हुई शिखा खुल गई । उसका काला चेहरा
ऋोध से तमतमा उठा, तेज स्वर में बोला, 'अब यह शिखा उसी समय
चपधेगी जबकि मैं नववद वश का नाश कर डालूगा 1
इतना कहकर वह एक ओर को बढ गया 1
महाराज ने भी उस छुरूप ब्राह्मण के अभिशाप को सुना और क्रोध
थीकर रह गए ।
सात
इस घटना को कई मास बीत गए 1 महाराज के थुप्तचर बूढे शक्टार
और उस दुरूप ब्राह्मण को खोजने मे असफल रहे । कोई ने कोई पद्टयन्न
रचा जा रहा है, ऐसा उ्हें आभास होने लगा था । एक दिन महाराज
और महामात्य महू॒पि कात्यायन विचार मुद्रा में बैठे हुए भे । सहसा महा-
राज के मुख से निकला, “हमारे गुप्तचर एक बूढ़े को खोजने मे असफल
रहे यह कैसी बिडम्बना है
“महाराज ! शकटार अपने राज्य में हांते, ता अवश्य मित्र जाते । वे
कही दूर निकल गए हैं, इस राज्य की सीमा से ।! महूधि काल्यायन ने
कहा।
हूं । महाराज वे सुख से निकला !
“यह भी अच्छा नही हुआ महाराज ! महधि कायायन बोले ।
क्या, ऋषिवर ?' भहाराज ने उत्सुकता से पूछा 1
महाराज । शकटार इस राज्य के हितंपी थे 1 वे सदा इसके हिल में
ही सोचते पे ।/ महपि कात्यायन ने कहा, 'उद्े महामात्य के पद से हटा
कर एक साधारण से मत्री का पद देना, क्या ठीक था ”'
“आप ठीक कहते हैं, ऋषिवर ! महाराज ने दिन्न स्वर में कहा,
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