मिट्टी और फूल | Mitti Aur Phool
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
788 KB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लुच्घक
बह नीलम के नग-सा लुग्धक, जगमगा रहा नभ में मलमल |
बह मेरे श्रासोंसा छलछल, मेरे श्राइल मन-न्सा चचल |!
फिसकी सुधि दम रही ! लुब्धक जगमगा रहा मम में कलमल !
घनश्याम यवतनिरा नित्य यही, है वही शूत्य नभ रगस्थक्ष,
है खेल यही श्राखेट, यही शर, बढ्ी भीत सग--शिर केवल
नाठक के नायकन्सा लुब्धशः जगमगा रहा नम में भलमल |
यह तीन गाँठ का उसका शर, जो शर सब दिन जाता निष्फल,
ऐसा ही मनका इच्छाशर, है लक्ष्य बनाया छायाछल !
वह नम का अआ्ाखेटी छुब्धक्, जगसगा रहा नभ मे मलमल।
ली दीर्प श्वास सन्नाटे ने, जैसे वह करवट रहा बदल,
यह मध्य निशा के 8 पहर शन्य', कद काँप उठा पल भर पीपल
आगया ठोक सिर पर लुन्धए, जगमगा रहा नम में मलमल |!
अब सिर गई है शीत रात, डरते डरते दिन रहा निक्ल |
प्राची फेठिद्वरे कोने में पौ फ़टी-खुला आरक्त पटल!)
सो गया नील नगन्सा छुब्धक, जगमगा रहा था जो ममल ।!
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