मिट्टी और फूल | Mitti Aur Phool

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Mitti Aur Phool by नरेन्द्र शर्मा - Narendra sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मिट्टी और फूल चुद्धिजीप श्ादशमुग्ध मानव भी मरी ही बाति हैं, पेसम्बर आर शिफम्दर का मसुर्भसे द्वप है, मुझमें इति है ! ररे कनवान पर उड़गन थी दारा चारत टिमकम - मात, निनकी ससरंगी मोदी में सिर घर सूरलकिरणों सोतीं ! पं गत्यलोक की मिट है, में सूबलाक को एक ्ंरा; नो ह लिस घर से किस्म, है गरा भा लो सदी संश (२) इसे में द्ाया रस चसस्त, थिडी वो. चूलाजनसिला फूल ! पल का छुलजुला फूल जेस, दूसता समोर में भूल भू ! जिस सिटी से जीवन पादा, बद उस सिटी को या मूल, धन ते बुलबुला फूल जस, दसवा समीर मे सूल कूल ? च्् फ् देश जो. तारों को, सनालरमं थी उड़ जाऊँ बहुत दूग्, है पदों जल +हा सीलम के मंदिर में बचे कप श्र! तितली को देखा शरीर कटाना सिसका दे दो दो चढ़ल पं मीना आई तो उससे भी उड़े को माँग चल पंत ! फिर आरा निकली बने की विडिला कनके चुनने, लुर्गा लग चला मुक भा उड़ा कढाँ वां फूल लगा उनसे कहने ! बड़ा की लाल ससन्तों थी, था फूल सुनायी रंगगरा, बस पल में दोखा चिड़िया के सुंद मे बढ डंठटल दरा-दरा ! ऊपर था. नीला. ऑ्रासमान, दौग्वी नीचे संना 'घरती, थल का बुलबुला फूल टूटा, पर मिड़ी इसमें क्या करती १ तर गिरा घरा पर फूल, मिला सिटी में, छिन में दत्ा धूल ! जिस मिट्टी से जीवन पाया, था उस मिड़ी को गया भूल ! गिट़ी कहती- में सच कुछ सहती रहती हूँ चुपचाप पड़ी गत्रातप मे गल त्रार सूख पर नहीं राज तक गली सड़ी !?




User Reviews

  • Reetu

    at 2020-01-17 15:39:47
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "10"
    Nyce
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