मोहनदास करमचंद गांधी | Mohandas Karam Chand Gandhi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mohandas Karam Chand Gandhi by नरेन्द्र शर्मा - Narendra sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नरेन्द्र शर्मा - Narendra sharma

Add Infomation AboutNarendra sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जन्मभूमि और परिस्थिति 11 खाना नदें पातीं तो खाखरा और दही खाकर . मोनिया पाठशाला चला जाता । बचपन से ही समय का पावन्द था । घर से सीधे पाठ- शाला और पाठशाला से सीधे घर आना मोनिया का नियम था । मोनिया अपने संकोची स्वभाव के कारण सहपाठियों के साथ भी बहुत कम मिलता-जुलता था । संयोगवश क्रिसी समवयस्क वालक . से मित्नता हो जाती तो मोनिया उसे मन से निभाता । एक वार अपने मित्र को आम खाने का न्यौता दिया । दावत के ऐन दिन न्यौते हुए मित्र को स्मरण दिलाने की याद नहीं रही । आम-रस की दावत में मित्र शामिल न हो सका । अपनी भूल के लिए मोनिया ने पश्चाताप- वश उस साल आम न खाने की प्रतिज्ञा की । मित्र ने और घर के वड़ों ने समझाया-बुझाया लेकिन मोनिया अपनी प्रतिज्ञा पर दढ़ रहा स्कूल में निरीक्षण के समय इंस्पेक्टर से आंख वचाकर शिक्षक ने किसी शब्द को गलत से ठीक लिखने का संकेत दिया । लेकिन नकल करना मोनिया को स्वीकार न था । विशेष वात यह है कि शिक्षक के विषय में भी निरादर की भावना मन में न जाने दी । बाल्यकाल में भी मोनिया का नियम था कि बड़ों के दोपों की ओर न देखना चाहिए परिश्रम और रटन्त से वचने के लिए हाई स्कूल के छात्र मोंहनदास करमचंद गांधी ने संस्कृत से पल्‍्ला छुड़ाने की ठानी । संस्कृत के अध्यापक नें समझाया कि संस्कृत से कतराना अपनी संस्कृति से हाथ धो लेना है। प्रोत्साहन का अच्छा प्रभाव पड़ा । और जब मोहनदास के प्रति अध्यापक ने पूर्ण विश्वास व्यक्त किया भरोसे का वोझ डाला तो मोहनदास ने अभ्यास और अध्यवसाय से उत्तीणें होना अपना कत्तंव्य समझा । अपने विवाह के कारण फेल होने से स्कूल में एक वर्ष खो दिया था अब एक साथ दो कक्षाएं पार कर क्षति-पुत्ति कर ली । इस सफलता से आत्मविश्वास बढ़ गया । वह अपने शिक्षकों के प्रति विनीत थे पढ़ाई पर पुरा ध्यान देते थे । उन्होंने स्वयं को मामूली विद्यार्थी कहा है । किन्तु एक वार




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now