इतने अच्छे दिन | Itane Achchhe Din

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Itane Achchhe Din by कमलेश्वर - Kamaleshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहा होगा, तो चीड़ के पत्तों की तरह ही यह सर्दे हवा उसके बालों को भी सहला रही होगी । में अपने बैग का सामान संभालती हुई उतरती पगडंडी से अपने धर की ओर चली गयी थी । दूसरे दिन साहिल के मां-बाप दोनों आये ये । उन्होने साहिल की पूरे सेशन की फीस का चेक दिया थां। उसके जरूरत के समान की लिएदें मुझसे ली थी और साहिल के खिलौनों का एक बक्सा मेरे पास छोड़ कर चले गये थे, क्या फायदा' “अगले महीने तो साहिल बोडिंग हाउस में आएगा ही, तब दोबारा लाना पड़ेंगा । यह बवसा हम यहीं छोड जाते है उसकी साइकिल और वडीवाली मोदरकार भी । “स्कूल में बच्चों के खेलने के लिए किसी चीज़ की कमी नहीं है' *” मैंने कहा था, “साहिल अगले महीने आयेगा *“तब तक* *” घर पर उसके पास और तमाम खिलोने हैं।” साहिल की मां ने कहां था और बे दोनों सब कुछ तय करके चले यए थे । यह अच्छा भी था। क्योकि पहली बार मे छोड़ा हुआ बच्चा कभी- कभी बहुत ही उदास हो जाता है उसकी दुनिया ही बदल जाती है और बह समझ ही नही पाता | तब इन वच्चों की मासूम आंखों के खामोश सवालों के जवाब देना बहुत मुश्किल होता है । इन्हें इनके बिस्तरों में सुलाते वक्‍त कोई थपकी काम नही देसी'“*घंटों ये सुबकते रहते हैं, कभी बेहतर रो भी पड़ते हैं, पर कंद पंछियों की तरह छुबकते-सुबकते सो जाते हैं। सुबह इनकी मासूम आंखो को पलक भारी होती हैं और आंछुओं के हलके रेतीले निशान बाकी होते हैं फिर ये हिलमिल जाते हैं । दूसरे बच्चों को देख कर सब कुछ भूल णाते हैं और सुबह के उजाले में दिखाई पड़ती दुनिमा के बारे में अचरज से भरे अपने छीटे-मोटे सवाल करने लगते हैं। “आंटी वो त्या है ? “मेंडम वो क्या हैं 2” फिर शाम तक के लिए उनकी दुनिया बस जाती हे । खूब मस्ती करते हैं। कंपाउड में सेलते हैँ, अपने बलाम में वेंठ कर धर बनाते हैं। टूटे हुए पहिये जोड़ते हैं ॥ कागज पर रंगीन पेंसिलों से अपनी दुनिया में रंग भरते हैं। चिड़िया, हाथी और मम्मी-पापा बनाते हैं। लेकिन सोने से पहले फिर बहुत अकेले हो जाते हैं। न सोने की जिद करते हैं। अच्छा, थीक है*** / 25




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