प्रशमरति प्रकरण | Prashmarati Prakarnam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ रायचन्द्रजेनशाखमाला [ विषय-सूची विषय पृष्ठांक | विषय पृष्ठांक मनुष्य-प्योयकी दुर्लूमता ४५ | देश, कुछ, शरोर, शान, आयु, बल, भोग, विभू- १1 ” सी नि्न्द् नहीं है, हित कया है! ४६ अनेक गुणोंके होनेपर मी पुरुषोंका विनय ही प्रधान भूषण है शास्त्रके समी आरम गुरूके आधीन हैं, जो अपना हित चाहता है, उसे शुरूकी सेवार्म तत्पर रहना चाहिए गुरू उपदेश देते हों तो अपनेको पृण्यवान्‌ समझे कि गुरूका मुझपर इतना अनुग्रह है दितकारी उपदेशके द्वारा शिष्योंका उपकार करने- वाले आचायेका शिष्यको क्‍या प्रत्युपकार करना चाहिए १ परम्परासे विनयका फल भोक्ष है अविनयी मनुष्योंको क्या फल भोगना पडता है ! उसी सकय्का खुलासा इसी वातके समर्थनमें दृष्टान्त 5६-पष्ठ अधिकार--आठमद- दृष्टन्तको दाश॑न्तमें घटाना डछ ४९ ४५९ ०० ५१ ण्र्‌ प्र च कारिका ८०-१० १ प्‌ मपतार-भ्रमण करते जीवकी कोई जाति सर्वदा नहीं रहती ४1 इसी बातकी स्पष्टता ५७ कुलमदफो दूर करनेका उपदेश ५७ रूपमदकी बे हे ५८ बलओऊ मदको नि ३३ ६० लाभफे मदफी. ,, स्‍ ६१ नुद्धिऊे मदको 99 39 घ्र्‌ फ्सीओी प्रिय ध्ोनेका मद न करना चाहिए ३ पुपया मद ने करना चाहिए ६४ & 51 ४- करनेया*ड स्वृल्भद्र मुनिकी कथा टिषणीमें ६६ गातिगदसे उसात्त हुआ ग्नुप्यथ इसलोकग्र पियशानको तरद नु सी दोता है। ६७ मानस पायी मी दु,सी होता है ६८ एर निन्‍दा क्यों छोड़ना चादिए? ६८ बमादयफे कारण शी सीच बगैरद जातियोंमें जन्म हवा हे हक तिकी विशमता देखकर संसारमें केसे रति होती है १ ७० वैराग्यके निमित्त ७० शुभ परिणामोंके स्थितिके लिए. राग-द्वेषका त्याग: ओर इन्द्रियोंको शान्त करनेका प्रयत्न करना चाहिए, ७१ ७-सप्तम अधिकार--आचार-कारिका १०२-१४५ विषय अनिष्ट क्‍यों हैं ! ७२ विषय-भोगसे मनुष्यको थोड़ा बहुत सुख होता है। अतः विषय उपकारक हैं, इसका उत्तर . ७३ दूसरा उदाहरण ७३ संसार-अ्रमणसे भयभीत मव्यजनोंको आचारका हे अनुशीलन कर उसकी रक्षा करना चाहिए ७५ आचारके ५ भेदोंका सक्षिप्त वणन ७६ आचारांगके प्रथम श्रतस्कर्धों ९ अध्ययन हैं, उनके आधारसे आचारके ९ भेदोंका संक्षिप्त वणन ७६ द्वितीय भ्रतस्कन्धकी प्रथम चूलिकाके अधिकार्रोका वणन ७८ सप्त सप्तकी द्वितीय चूलिकाके अधिकारोंका वर्णन. ७९ जिस साधुका मन आचारसें रम जाता है, उस साधुको कभी मी मुक्तिको बाधक बातें उत्पन्न नहीं होतीं ८१ विपय-सुखकी अभिलाषा करना व्यथे है ८३ ८-अपए्म अधिकार--भावना- कारिका २४९-१६६ प्रशम-सुख प्राप्तिका उपाय ८४ सरागी इष्टवियोग अनिष्ट योगसे दु.खी होता है वीतरागीको वह दुःख छूता मी नहीं पा विपय-सुखसे प्रशमजन्य सुखकी उत्कृष्ठता ८६ प्रशम-सुखका पुन, खुलासा ८८ लोकफी चिन्ता छोड़कर साधु अपना भरण-पोषण कैसे करेगा ? इस शकाका समाधान ८८ छोक-वार्ता स्सनेमें दूसरा कारण ८९ 9 39 अल्याणकारीपना ९० दोष और ग्ुणवी शिक्षा लोकसे दी लेनी चाहिए




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