फूल और पाषाण | Ful Aur Pashan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फूल और पाषाण / १५
॥ “ग्राप तो व्यर्थ ही राजा से डरा करते है ।” कमलावती
पैली--“जब पुण्य प्रनुकूल होते हैं तो राजा खुण होता है प्लौर
ब बुरे कर्मों का उदय होता है तो सगे मां-बाप, मित्र, भाई श्रादि
वजन भी प्रतिकूल हो जाते है।'
; “प्रव इन बातो को छोडो |” मत्री वोजा--/पुण्यपाल को
प्द्यालय से श्राये देर नही हुई कि उसके लिए वेडियाँ भी श्रा गईं।
/सन्तपुर के मत्री श्रपनी वन््या का विवाह पृण्यपाल के साथ करना
एह््ति हें ।/
“यह तो भेरे मन की बात हो गई स्वामी !” कमलावती
तीली--पुश्रवघू के बिना मेरा घर-प्रॉगन यूना है। भला, नाम
गा है बहू का?
“कानकामजरी ।” मप्री ने कहा--लाखो में एक है । चौसठ
चैग्याएं पढी हुईंहै। पुण्यपाल श्रौर कतक्मजरी की जोडी बड़ी
प्रछ्द्धी रहेगी ।
ब्याएं पयका हो गया | पुण्यपाल का विवाह कनकमंजरी के
पराध सोटलास सम्पन्न हो गया। युवराज के से रहन-सहन प्रौर ठाट-
बाद फे साथ पुण्यपाल प्रपने सये भवन मे सुखमंय दाम्पत्य भोगने
जगा । जब वाभी बहू बरसध्रमण को जाता तो चार अगरक्षक उसये
पाध चलते । उसके ऐश्वर्य को देखकर कुछो फो ईरप्पा भी होती पश्ोर
पह देते--यह है बिना मुकुट का राजा । पिता रासा का नौकार एक
प्री ही है झौर पुत्र विना पद के कितना कुछ है। []
न आ
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