फूल और पाषाण | Ful Aur Pashan

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Ful Aur Pashan  by स्वामी हिम्मतमलजी महाराज - Swami Himmatamalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फूल और पाषाण / १५ ॥ “ग्राप तो व्यर्थ ही राजा से डरा करते है ।” कमलावती पैली--“जब पुण्य प्रनुकूल होते हैं तो राजा खुण होता है प्लौर ब बुरे कर्मों का उदय होता है तो सगे मां-बाप, मित्र, भाई श्रादि वजन भी प्रतिकूल हो जाते है।' ; “प्रव इन बातो को छोडो |” मत्री वोजा--/पुण्यपाल को प्द्यालय से श्राये देर नही हुई कि उसके लिए वेडियाँ भी श्रा गईं। /सन्तपुर के मत्री श्रपनी वन्‍्या का विवाह पृण्यपाल के साथ करना एह््ति हें ।/ “यह तो भेरे मन की बात हो गई स्वामी !” कमलावती तीली--पुश्रवघू के बिना मेरा घर-प्रॉगन यूना है। भला, नाम गा है बहू का? “कानकामजरी ।” मप्री ने कहा--लाखो में एक है । चौसठ चैग्याएं पढी हुईंहै। पुण्यपाल श्रौर कतक्मजरी की जोडी बड़ी प्रछ्द्धी रहेगी । ब्याएं पयका हो गया | पुण्यपाल का विवाह कनकमंजरी के पराध सोटलास सम्पन्न हो गया। युवराज के से रहन-सहन प्रौर ठाट- बाद फे साथ पुण्यपाल प्रपने सये भवन मे सुखमंय दाम्पत्य भोगने जगा । जब वाभी बहू बरसध्रमण को जाता तो चार अगरक्षक उसये पाध चलते । उसके ऐश्वर्य को देखकर कुछो फो ईरप्पा भी होती पश्ोर पह देते--यह है बिना मुकुट का राजा । पिता रासा का नौकार एक प्री ही है झौर पुत्र विना पद के कितना कुछ है। [] न आ




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