श्री राजप्रश्नीयसूत्रम् भाग - 2 | Shree Rajaprashniy Sutram Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्री राजप्रश्नीयसूत्रम् भाग - 2  - Shree Rajaprashniy Sutram Bhag - 2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कन्हैयालाल जी महाराज - Kanhaiyalal Ji Maharaj

Add Infomation AboutKanhaiyalal Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अढाह्‌ पयेसिप्स योर हे चिसे रीसूपों सो सग्गे गमभिभभनाथ पश्चसरीसपाणा तद्नप्रवेश्षरूपा5थे: कगारसमण पज्जुवासिक्षति उधामिष्ठ; पीठलगसेल्लासंफ युम॒कं नमरि यष्यंति प्रतिद्ारिकेण ब्तुभ ; तु सम्मानयियन्ति खाद्य खाद्य सज्झ थश्नेव कुमारमण प्स डे४र्या उध्यां दुश््प्माणे परिद्दारिएण श्त्यादि है आहाई पएसिप्स योग्य ह्वंता हे चित्र सरीसपों सोपसग्गे जभक्षिभभनीय बहूर्ना हिपदचतुष्पद-- मृगपशुपक्षिसरीसपाणाम्‌ हिपदादय: पक्षिसरीसपाणां तद्ननप्रवेशरूपोज्थः कुमा रसमण पज्जुवासिस्संति अधामिए्ठ पीठफलकसे ज्ञास युष्माक नमंसिष्यति प्रातिद्ारिकेण तुब्म तत्र खाद्य स्वाद मज्झ् यप्रैष ड४ पाधमा दृइखमाए श्त्यादि १०० १०० १०१ १०१ १०२ १०२ १०२ १०२ १०४ १०४ १०४ १०४ १०४ १०४ १०४ १०५ १०५ श्०५्‌ २०५ श्ण्प १०६ १०६ १०७ १०७ १०८ १०८ १८७ ११० ११० १११ १५ २३ २€- २७ २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now