आयुर्वेदीय हितोपदेश | Ayourvaidiya Hitopdesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आयुर्वेदीय-हितोपदेश १७
, सज्ञ' किया जाता है, चह सेरा मन (सदा अपने श्ौर सब के लिए) शुभ ही
_ संकल्प करनेवाला हो ।
--ऋग्वेद, सामवेद, यज़ुर्वेद (तथा इनके श्रन्तर्गत श्रथर्ववेद ) जिसमें ऐसे
स्थिर होकर रहते हे जैसे रथ की नाभि में श्ररे (प्रर्यात् जो सर्व चिद्याओं का
आश्षय-स्थान है) तया प्राणियों का चित्त नाम स्मरण की चुत्ति जिसमें ओोत
(गुँथी हुई) है बह सेरा मन (सदा अपने श्रोर सब के लिए) शुभ ही सकल्प
* करनेवाला हो । ः
“-उत्तम सारयि जैसे रहिमियों (लगामो) की सहायता से अद +ं से श्रभी-
प्सित गति कराता हैँ ऐसे ही इच्ध्रियों द्वारा जो पुरुषों को निगृहीत कर*
श्रभीष्ट मार्ग पर लाता, है, जो हृदय में स्थित, श्रजिर (चपल) श्रौर श्रति
वेंगशाली है, वह सेरा मत (सदा अपने झौर सब के लिए) शुभ ही सकलल्प
करनेवाला हो ।
दरीररक्षोपदेश:ः
टिप्पणी में प्रज्ञायराघ का लक्षण देते हुए कहा हैँ कि--शरीर के आरोग्य,
पुरुषायुध की प्राप्ति तया श्रामरण शरीरावयवो की दुढता का श्रादर्श पूर्ण करने
को जिम्मेदारी प्रत्येक पुरुष को स्वयं हैं। आचार्यों ने कण्ठ-रव से (स्पष्ट
शब्दों में) क्रन्यत्र कहा है ।--
पुरुषो मतिमानात्मन. शारीरेप्येव योगश्षेमकरेपु अयतेत विशेषेण ।
आरीर॑ं हास्य मूलम् , जरीरमूछशच पुरुषो भवति | भवति चात्र?--
सर्व॑मन्यत् परित्यज्य शरीरमनुपालयेतू ।
तदभावे हि भावानां सर्वाभाव' शरीरिणाम् ॥
श चू० नि० ६।६-७
--बुद्धिमान् पुरुष को चाहिए कि जिन श्राहार-विहारादि से शरीर फा
योगक्षेम हो--नताम, अ्रनागत व्याधियो की श्रनुत्पत्ति एवं बल-बर्णादि की ग्राप्ति
है हो--उनके हो ज्ञान और श्रनुष्ठान का प्रयत्त करे ॥ फारण, शरीर ही इसका
मूल है--घमे, श्र्य, काम ओर मोक्षरुप पुरुषा्ों के श्राचरण में शरीर हो
१---पुरुप-जीवन को वेदिक वाढ्मय में यज्ञ कहा है। देखिये एक अमाण--
. पुरुपो बाव यज्न.--छान्दोग्योपनिंषदू अ० 3। ख० १६॥
--आयुर्वेद् ने सी मन का एक कर्म अपना और इन्द्रियों का निम्नह बताया
-है। यह ऊपर लिखा है ।
३--सद्दिताकार अपने कथन के प्रमाण-रूप जहाँ पूर्व अन्धकार का वचन इडूत
“करते हैं, वढाँ प्रथम 'मवति चात्र' इन पदों का उपयोग करते हैँ ।
हर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...