श्रावकनुं कर्तव्य तथा विविध स्तवनादि समुच्चय ग्रंथ | Shravaknum Kartavya Tatha Vividh Stavanadi Samucchy Granth

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Shravaknum Kartavya Tatha Vividh Stavanadi Samucchy Granth by भीमसिंह माणक - Bheemsingh Manak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र त्दगोचरे समनसा यदि या मुनीण, गच्छति चूनमध एवं हि बधनानि |! भाषार्थ--हे स्थामिन ! देवताओं ज्यारे पृष्पनी हृष्टि करे छेर ते पुष्पो मुख उचचु रासीने तथा बीट-प्रयन नीचु राखीने पृ उपर पढे छ ए आश्रयेकारक छे, परतु ते पण एक रीते तो बन जोगज छे, कारण के सापणी समीपे शोभायमान फिंवा पवित्र । बाछाना अतेर-पाद्य वनों अधोगुख थाय अने भावसुर उन बाय ए तो स्थाभायिकज छे, प्रशुना प्रभाववी भव्य छोकना उपर फेपी मनहर असर थाय छे त्तेशु आमा सचन करयामा भ छ, जेबी रोते पृष्पना यनों नीचे काट रहे छे अमे पाददी विकसी रहे छे तेबीज रीते अछुना दशन मात्रथी भव्य प्राणीओं रोमेरोपमा विकस्परता प्राप्त चाय छे न्रीजा प्रातिहायना सपधमा तेभोश्री प्रकागे छे झे- स्थाने गभोरहदबोद धिसभयाया', पीयूपता तय गिर समुदोरथंति । पीला यतः परमसमदसगभाजो, भव्या अजति तरसा5प्यमरामरत्य ॥ भावार्थ--समुद्रभथनने अते सम्रद्रमाथी जेबो रीते अमृत व आव्यु इतु अने तेना पानयी देवताओं अपर यम्या इता तेथो + आपनी याणी गभीर हृद्यरूपी सम्ृद्रमा उत्पन्न थयेल अमृतनेन ये फादे छे ते स्याभारिझ 3, कारण के तेना पानी उस्कठ हृपय भव्यात्मा नो जलदोधी अगर-अमर पदने पामी जाय छे अर्वात्‌। पनो दिव्य वनि जने अपन एके सरखाज सूखकर तथा कल्याण झर




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