आखर समकालीण राजस्थानी कहानियाँ | Aakhar Samakalin Rajasthani Kahaniyan

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Aakhar Samakalin Rajasthani Kahaniyan  by चेतन स्वामी - Chetan Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'कडी अणूती बात कर। दवर जी, ब्याव री पँली रात ई कोई बिनणी सू अकूगयो रैया करे कदेई २?! आ भांजाई री धीमी आवाज ही ! 'ो हा, पण बे, पण बण न रवण दो |” आछो, अब माय पधारा वा पराई जाई छाण, थारी उडीक मे ? इत्ता कैयर भाजाई स्थाद्‌ पाछी उठगी ही । मरसाराम भारी मन स आरे द माय आयस्यों हो । गीता उपन देखता ई पलय सू उठ'र अेकानी ऊभी होयगी । नरसाराम उ लाग्यो के स्थात्‌ वा बार उठ जावैली, पण उण ई मन काठा बणाय लिया हो वे जे वा जावणी चार्बली ता वो उणरे आाडा नी फिर ला। वो ६ वी पछ यू ई बोलो-बालो पलग रे कने ऊभो रयो, फेर होछ से ईस माथ बैठग्यो 1 गीता उणी ठौड ऊभी ही । 'काइ बात होई, बैठा कानी ? पूछण रे साथे ई उण आपरो हाथ गीता र साम्ही वधा दियो | वा की जेज ताइ फेर खुद म डूबियोडी सी ऊभी रई, फेर उणरे नडी आवती पलग माथ बैठगी अर बाली--'आपणी बडी बच्ची न नानेरे मेलण री काई जरूरत ही ? हो सके, तो उणन काल ई बुलाय ठीजा 1! इता क्वण र साथ ई उणरो मढो भरीजग्यो । नरसाराम ने जाणे आपरा काना माथ विस्वास ई नी होया । वो की पका ताईं हाक वाक उणर् उणियार॑ साम्ही देसतो रैयो, फेर ओकाओक वो उणरी गाद मे समाय- ग्यो। गीता मैं छाग्यो वी उणरी गोद म जेक ठाबर रो माथो आयग्यो है भर वा जाण बित्ती जेज ताई उणन पपोछती रैई। छ




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