नाडीज्ञान तरंगिणी | Naadigyan Tarangini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'भापाछवाद्सनलक्षता, रु ९३॥ मंदाग्रेःक्षीणघातो श्र नाडी मंदत- 1भवेत ॥ असकपूर्णा भ्वेत्कीष्णा ग॒ुवी ग़मा गरीयसी॥०शालघ्वी वहति दीप्ता- प्रेसथा वेगवती मता ॥ सुखितस्य स्थिरा तैया तथा बलवती स्एता ॥ ४५॥ टीका-अथ ज्वर और कामादिकके नाडीलक्षण कहते हैं. ज्वर्के कोपसे नाड़ी उष्णता और वेगय॒क्त होती है. काम और कोधसे वेगय॒क्त होती है. चिता और भयकी नाड़ी क्षीण होती है ॥४५॥ जिसका जठरामि मंद और घाव क्षीण होती है उसकी नाड़ी अतिमंद चलती है. 5 रक्तविकार है उसकी 'चाड़ी पत्येर्सी भारी और किंचित गरम चलती है- ओर आमरोगयुक्त नाड़ी भारी लदे भेंसेकी चालपर होती है ॥ ४४॥ जिसका जवरामि प्रदीप हे उसकी 'नाड़ी हलकी और वेगयुक्त चलती है और सुखकी' ' नाड़ी स्थिर और बलय॒क्त होती है ॥ ४५ ॥ अथसन्निपातनाडीलक्षणम्‌॥ लावतित्ति : खर्तीकगमना सन्तिषातत/र्भ॑गुदी त्रित- ' थेषपि स्थाठ्व्यक्ता सा घरा घुचम्‌ ॥२६॥ . टीका-जो नाड़ी रावपक्षी तित्तिर ओर बटेरकी




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