नव निधान | Nav Nidhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नव निधान / 49
चाहता हू | यह तो रूपक है वह भाई गन्ने के टुकडे को चूसता है पर
रस चूसने के बाद निस्सार भाग को छोड देता है और रस को शरीर
मे परिणत कर लेता है।
वैसे ही ये कविता के टुकडे, ये शब्द के गट्टे, आप चबा मत
जाइये, इनको चूसिये| चूसने का मतलब है-इसमे से वास्तविक
आत्मा के स्वरूप की प्रेरणा कैसे मिलती है, इस कला के साथ अर्थ
को लेने की चेष्टा करिये। यदि रस आ जाये, तो शब्द को व कविता
की कडियो को एक तरफ छोड दीजिये। और उसी अर्थ के साथ
अन्दर की चेतना का सम्बन्ध जोड दीजिये। चेतना से सम्बन्ध जुड
जायगा तो वह अर्थ चैतन्य शक्ति को प्रकट करने के लिए अन्दर जडो
के रूप मे पलेगा और चैतन्य शक्ति अपने आप मे निखालिश रूप से
प्रकट कर सकेगा।
आपको मालूम है-आम का बहुत बडा झाड किससे रस पाता
है ? आम का झाड बडा होता है तो किसके आधार पर ? आम की
गुठली के आधार पर | गुठली के अन्दर कुछ सत्व है, उगने की शक्ति
है। पर उगेगी कब ? जब कि उसको जमीन क॑ अन्दर डाला जायगा।
धरती के अन्दर मे से वह उगेगी। पर कभी आपने यह भी ख्याल
किया कि जब पौधा बाहर आता है तो क्या गुठली बाहर आती है ?
या उसका विकृत रूप बाहर आता है ? गुठली स्वय विलीन हो जाती
है, अपने अस्तित्व को खो देती है। पर वह दो छोर से विकसित होती
है। एक ऊपर के पौधे के रूप मे और एक भाग जडो के रूप मे। जडे
फलती है उस वक्त गुठली का रूपक का नही देखेगे। उसने अपना
अस्तित्व गमाया और अन्दर जडो के रूप मे वह बाहर पौधे के रूप
मे दूसरा अस्तित्व प्राप्त किया है। वे जडे मिट्टी मे है और मिट्टी
से आम्र वृक्ष के बनने योग्य जितना रस है उस रस को जडे
अपने माध्यम से खीचेगी। वहा पर रासायनिक प्रक्रिया बनती
रहेगी |
आज का मानव प्रयोगशाला की रासायनिक प्रक्रिया को
देखकर विचार मे पड जाता है, कि विज्ञान की प्रयोगशाला मे कैसे
विचित्र प्रक्रिया हो जाती है। देखो ना, जो स्वर्ण पत्थर के समान
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