मृत्यु और परलोक | Mratyu Aur Parlok

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Mratyu Aur Parlok by नारायण स्वामी - Narayan Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ श्रोरेम द प्गच पु लक का मुत्यु और चरल्ादे फटुल्ा जुद्यााओु _ प्रथम परिच्छेद पारस ए- ८5-2 सुगातद पर एक सुन्दर तपो-भ्रूमि है। श्रुज्नों की शीतल छाया है। हरी हरी दूव से सारी भूमि लरा रही है । शीदल जल के खुद्दावने चश्मे जारी हैं। प्राणप्रद वायु सन्दगति से बह रददा हैं ।रंग-विरंग के फूल खिल रहे हैं। फल वाले डरत्त फलों से लदे दए हैं। तरद तरद से पक्षी इघर उघर वहचदा रहे है | निदान पारा बन प्राकृतिक दृश्यों से सरपूर होकर भक्ति शोर धैराग्य का शिक्णालंय चना हुआ है । पवित्र शरीर पुरय भूमि में पक दूषि जिनका शुभ नाम शार्मवे्ता ऋषि है वास करते हुये तपोमय जीवन व्यतीत करते हैं । ऋषि श्रात्मश्ञानों हैं झात्मरत हैं चेद्रों का ममे जानते हैं उपनिपदों के .रहैस्यों की




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