पाली - प्राकृत - व्याकरणम् | Pali Prakrit Vayakaranam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मथुराप्रसाद दीक्षित - Mathura Prasad Dixit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क संस्ततानुरा[ गियों ०७ के (९
' नुरागयाों के [छुए अपूद अवसर
महामहोपा ध्याय मथुराग्रसाद दीक्षित
कृत
संस्कृत साहित्य के अपूर अन्थरत्र
.. भारत-विजय-नाटकम-- यह प्राचीन कवियों के सदृश नाट्कीय नियमों
का पालन करते हुए ऐतिहासिक तथा राजनीतिक नाटक वीसवी सदी में अपूर्
है। इसमे भारत मे अंग्रेजों के आगमन, उनके अन्यायसे भारतव्यापार का नाश,
श्रंगूठे काय्ना, वेगमों पर कोड़े लगाकर आभूषण उतारना, खजाना लूटना आदि
दृश्यों का तथा कूटनीति से देशीराज्यों का अन्त करना आदि का अपूर्य रीति
से दृश्य वणन है|
१८४७ का स्वातन्त्य युद्ध, झाँसी रानी की वीरता और अन्त में कांग्रेस के
स्वातन्त्य युद्ध से पराजित होकर मद्ग॒त्मा गाँधी जी के हाथों में मास्त को विभक्तकर
शासन सौंप कर चले जाने का अपूव दृश्य दै। इसके पढ़ते हुये किस भारतीय का
हृ्ष्य शौर्य से ओत प्रोत न दो जायगा, एवं किसके हृदय में स्वदेश प्रेम की लहरें
न उठने लगेंगी, विदेशियों के शासन से किस के मन में घृणा न हो जायगी।
इस रचना में सव से अधिक महत्त्व का विषय यह है कि दीक्षित जी ने
अपनी अमूतपूर्व नीति-कुशलता से अंग्रेजों की गतिविधि समभकर आज से
दश वर्ष पूर्व ही देश को विभक्त कर इनका यहाँ से १६४८ में प्रयाण करना
जनता के सामने रख दिया था, १६४६ के कांग्रेस शिक्षामन्त्री के पत्र साथ में -
छपे हैं, दीक्षित जी की यह मविष्य-दर्शिता आज भी महषियों के अस्तित्व का
ज्वल्न्त प्रमाण है, अतः संस्कृतानुरागियों के लिये यह परमोपादेय है। अत-
एव इसके गुणों में आकृष्ट वोडे के विद्वानों ने उत्तरप्रदेश संस्कृतन्यथमा में
एवम पञ्जाव सस्कृत-बो्ड के विद्वानों ने प्रा्-परीक्षा में इसे नियत कर दिया
हे | मूल्य २1) हिन्दी अनुवादसदित
२--शह्गडुरविजय नाटक--इंसमें मण्डनमिश्र का शाख्वार्थ, मीमांसा,
वेदान्त, जैन, बढ, चार्वाक, कापाल्षिक आदि दर्शनों का तात्विक वशन है जिससे
प्रत्येक दर्शन का ठोस एवं पूर्ण परिश्ञान हो जाता है । मूल्य 1) मात्र
३- भक्तसुदशन नाटक- बढ देवी मागवत से ऐतिहासिक नावक बिखा
गया है | रामचन्द्र जी के पूर्वज सुदर्शन की भक्ति, तलल्ीनता,हुर्गा? देवी के मन्त्र
|
का प्रमाव, दुर्गदेवी का प्रगठ होकर युद्ध में शत्रु को मारकर सुद्शन--अयोध्या-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...