अध्यात्मसार | Adhyatmasar

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आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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नेमिचंद शास्त्री - Nemichand Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्यात्म का नाहुर्स्प है कै निषवल्लिसनां तृष्णां व्घंसानां सचोबनें । अध्यात्मशास्नदात्रेस छिंप्दन्ति प्रमबंध 11१६० प्रमनध्पियज अध्यात्मशाश्नसूपी हसिये से मनख्पी वन में विषलता के समान बढती हुई दृ०्णा का छेरन कर पेते है । चने वेश्म घन दौस्थ्ये तेजी ध्नात्ते जेल ससे । दुरापसाप्थते घत्ये कलावच्थार्मवाड सथसू ॥प७त जैसे बन में घर निधंनता में धन अन्वकार में दोपक और भर९- भूमि मे जल की प्राप्ति अतिदुलंभ है वैसे ही इस कलियुग में अध्यात्मशात्त्र को प्राप्ति दुलभ है नह किसो विरले हो भाग्यशाली को मिलता है । नेदाइप्यशास्त्रवितु क्लेशं रसमव्यात्मशास्त्रवित्तु । शाग्यशूदु शोभमाप्नोति वहते चदन खर ॥१८॥। वेद आदि अन्य शानों का राता कलश का ही अपुभव करता है जरकि अध्ञयात्मशारन का जाता अपुभव-रसासूत का आस्वादन करता है। जैसे गधा तो केनल चन्दन के भार को हो ढोता रहता है भा्य- शाली पुरुष हो उस चन्दन का उपयोग करता है । मुजास्फालन-हुरतास्य-विकाराशिनया परे । अध्यात्सशास्त्रविज्ञासतु चदन्त्यविक्ृतेक्षणा 1१६४७ अन्य शास्त्र के ज्ञाता जव उपदेश भाषण देते हैं तब भुजाएं जोर से फटकारते है तथा मुंह आदि का विकृत चेब्टाओ द्वारा आभनय करत है परन्तु अध्यात्मशास्त्र के ज्ञाता अन्य अगों का विकृत करना तो दूर रहा आँखों को भो मटकाए बिना स्वसाविक रूप से वोलते है । अध्यात्मशास्त्रहेमाद्रि-सधितादाग मोदथे 1 भुयांसि युर९८्नानि प्राप्यते विवुवेनें किस ? 0२०७ क्या अध्यात्म-शा६नरूपी मेरुपबत से आभनम-समुद्र वा मथन करके विक्वीदु अनेक गुणरूपी रत्नों को नहीं पाते हैं ? अनश्य पाते हैं । रसो सोगावधि कासे सदभक्ष्ये सोजनावधि । अन्वात्मशास्त्र-सेबायामसी निरवधि पुन 0२१




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