सूरज प्रकाश पार्ट II | Suraj Prakash Part-ii

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Suraj Prakash Part-ii by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे व कह, _ - अपनी ' आ्रोरबढ़ती हुई सुन:कर सुजफ्फरखाँ. बिना मुकाबला :किये ही' अपनी: सेना+ ,:. सहित. भाग गया। यह * डुभरटु,ं हू फनिकीश सर, रद 3 महाराजकुमार भ्रभंयसिंहने-नारनौल तथां : दिल्‍ली व. झ्रांगरेंकें श्रासंपासके -.... प्रदेशको' लूटंनां शुरू करे दियां श्र दाहजहाँपुरं तक पहुँच: गये । यहाँका फौज- _ दार भी इनके भ्रागे नहीं टिक सका और उन्होंने बाहजहाँपुरको लूट कर भर्मी भुत ' कर दिया । महारोजकुमार: श्रभयर्सिहका आतंक'चारों शोर फैल गया श्रौर दिल्‍ली में ..... खलंबली मंच गई । इस समय महाराजकुमारका. 'घौकठसिह' नाम पड़ा । अभय- :*..' सिंहजी' विभिन्न, प्रकारकी लूंटकी वस्तुग्रोंके साथ विपुल घन-राशि 'लेकरः वापिस लौटे ।: महाराजा * श्रजीतसिंहः पुत्रके. इस रणकौद्ल श्रौर- प्रतापकों देख कर . बहुत प्रसन्न हुए :्रौर उनका. स्वागत्त किया । श्रब उनको यह. विद्वास हो गया कि मेरें-बाद मेरा: पुत्र भी: राठौड़ोंकी: शानको: रखनेमें समथे होगा । उधर .वादशाहने घबरा कर एक दरबार किया श्ौर उसमें सब राजाश्रों- बाबोंकीं. संम्मत्ति. लेंकर महाराजा श्रजीतरसिहके पास नाहरखाँको अपना संदेंद ' . लेकर भेजा । नाहरखाँ महाराजाके पास पहुँचा किन्तु उसंके श्रचुचित व्यवहारके - कारण वह मारा गया । _ जब. बादशाहने यह खबर सुनी तो वह बहुत घबराया श्र एक बड़ी सेना : देकर शरफुद्दौला इरादतमंदखांको श्रौर हैदरकुलीको भेजा । इंसः विशाल दलके .« साथ.आमेर नरेश जयसिंह, मुहम्मदखाँ बंगस:्रादि भी श्रपनी-श्रपनी सेनाएँ लेकर . . महारांजोकें विरुद्ध झायें। इस:प्र कार शाही: दलको -्राता देख महा राजा झ्जीतंसिंहने ... नीमाज ठाकुर ऊदावत वीर श्रमरसिंहको अजमेरके किलेकी रक्षाका भार सौंप कर स्वयं मारवाड़ .जोधेपुरकी :रक्षाथे प्रा गये । शाहीं दलने.भ्जमेरके किलेको घेर लिया'। इस अवसर पर नीमाज. ठाकुर ऊदावत अभमरसिंहने बड़ी वीरता .: दिखाई कुछ : दिन युद्ध होनेके परचात्‌ श्रामेर' सरेश जयसिंहने संधि: करवा दी _ और अजमेर पर बादशाहका अधिकार हो गया । इस संघिमें महाराजकुमार '-अभयसिंहकीं : बादशाहके: दरवारसें दिल्‍ली जाना: तय. हुमा । ; .' बादशाह . मुहम्मदज्ाहनें 'महाराजकुमार श्रभयर्सिहके दिल्‍लीं - पहुँचने पर _ 'उनका 'बहुत आ्रादर-सत्कार किया शऔर उन्हें कई बहुमूल्य उपहार भेंट किये । दिल्‍लीमें रहते हुए इन्हीं दिनों एक समंयं महाराजकुमार ' अभयंसिंह बादशाह मुहम्मदश्ाहके - दरबारमें गये और निंभेंय होकर भ्रांगे बढ़ने लगे । जब वे बाद- _.दयाहके बिल्कुल निकट पहुँचे तो. वहाँकेः एक श्रमी रने उन्हें रोक दिया । महाराज- कुमारने तुरन्त ही अत्यन्त -क्रोघित होकर कटार निकाल लिया । बादशाह




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