जैनेन्द्र साहित्य और समीक्षा | Jainendra Sahity Aur Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रतेट प्रपने घाहित्प पर ३५
इस प्रकार लेखक मे प्रपे साहिस्य के भार ठत्व माने हैं
३ झात्म-परिष्कार भजवा प्रात्मोपप्तम्धि 1
२ भाबगानि्ठ प्राइस |
३ बृद्धि की दुस््मनी।
४ प्रहिसा प्रभात समस्त चराचर बयत् के प्रति प्रेम 1
प्रम्य स्पर्तों पर उसकी #छ धन्य माप्यताएं भो घाममे पाती हैं
$. प्रपने भीवर के कृष्थ-भाव भौर उमार को बास्पी देकर हसका करने का
प्रयत्ता 1
६ सक््यानृसंघान माज प्रूमि पर से ।
४ अस्तु-बगद् के अ्रष्ि घामरूक जिज्ञासा थो बाहर को भीतर की धह्ापठा ऐै
पाना बाहती है प्ौर जिसमें मनोनिष्ठ्ता है ।
८. ईस्वर-बोष ।
धपने साहिष्म के मूल स्लोर्तों पर भी लेखक ते प्रपना बिचार प्रकट किया है।
अह पगुमृष धत्य को भाणी देना साहिए्य का धर्म मानता है घ्ौर इस धर्म को ही उसने
साझिस्म में विभाया है। बह कहता है, “कोई सामाजिक प्रतिष्ख मेरे पास मह-ीँ।
जो मेरा ध्रमाब था बही मेष घौमाम्म बना। ज्ञाग भ्रौर मापा के भ्रमाव में मैं बहौ
कर सकता षा शिसका मुझे अमुमद्र था। ध्यक्तिपत प्रनुमब मैंने कहे इसलिए शोगों
के मन गो उसने घुप्रा होगा। शप्ट्र-मापा भौर प्रांतीग भाषाएं पृष्ठ £४। परस्तु यह
'्रमुमद प्ष्प किस सीमाप्रों में बथा है यह भी हें देखता होगा ! प्रेमभरर क्रीतफ्
बैतेरा बस्तुवादी कसाकार नहीं हैं। बह प्रपने चारों ग्रोर से उस श्प में रस प्रहण
सही करते जिंस झूप में प्रेमचन्द रस इहस करते हैं। घपनौ कफ्रियत बेऐे हुए थैनेस्ट
से प्रेमपन्द को उपम्पास लिखते को सलाह का उस्सेद् करते हुए कहद्ा है कि बह
प्रेमघस्थ की इस सत्ताहु को “परे, भर के गाते-रिस्टेवार जो हों बस उतडीं को सेकर
लिख दो । --शेकर भंह्टीं च्त सफे । ते खिख सके न छल ही पाते हैं। वास्तव में
यह्ीं धरे प्रेमचस्द जैनेश की कला का भेद घुरू होता है। जैतेखा तप्मबादी सही
भाजषादी हैं। बह नीठर हू छ्तेई दविभार में भाव में दष्पर में ग्टीं। हष्प को
भी बढ साबना मोर गिचार में रंग कर विशन्तण बना देते हैं। पह उनकी मद
मूरी है गा जिप्रेपता है लोकहिए। फिर इसी ज्ेश्ष में उन्होंने प्रेमचम्श का उस्मेल
कहते हुए बहाका है. बह हाजनापुगक झाहित्यकार बने णे । साहित्य उसके शिए
कमी विशास का हप ते था। गई कहानी पढ़ते थे तैयार करते बे । उसे मिदास नहीं
फकते थे। ध्ाहिल्प का पेज धार प्रेय पृष्ठ ३४० । परस्यु जैमेसस की साहि्य-प्र्रिया
ही दूसरी है । 'पंत्रे का मद' कहानी को सर्जन प्रक्तिया बताते हुए उन््हेंनि स्पष्ट किया
है कि किस प्रकार एक अन्पे को सेकर, $स््पता के शस पर, उन्हूने भ्रपने भीतर ले
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