युगप्रधान श्री जिनचन्द सूरि | Yug Pradhan Shri Jin Chand Suri
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( हे३ )
विचार करनेसे ज्ञात हुओ फि “बशप्रसन्ध” से, सूग्जीसे पहले वा०
मानसिंदनी (जिननिह सूरि) का छाहोर जानेका जिकरही नहीं किया
है अत समवहे कि वाचऊुज्ीकों छाहोर भेजनेफे समय सूरि महाराज
राजनगरमे हो। हा ? सूरिजी तो सम्भातसे ही छाहोर पधघारे थे
यह बात समयसुन्द्रजी झत मप्टकादिसे भठीमाति सिद्ध है। अप्टो-
श्री स्नात्रके विषयमे “वज-प्रयत्थ? का ऊथन ही विशेष ग्राद्य एवं
विश्बशनीय है, क्योकि 'जद्दागीरनामे! में भी स० १६४७ में जहा-
गीरके पुत्री जन्मका उत्लेगा है और अप्टोत्तरी म्नात्र भी उसी पुत्नीफे
अन्मदोपऊे उपशास्तिके निमत्त ही हुआ था। अत हमने “रास”
के अनुसार सूरिजीके छाहोर पधारनेके पश्चात् आनेवाली चैनी
पूनमका लिखा है किन्तु वास्तववमे स० १६४८ की चेत्री पूनम
होना चाहिये ।
दूसरे प्रकरण ( ० १५ ) में “सदेह दोछावली ब्वृहद् हचि” को
अ्रमले श्रीजिन प्रबोध सूरि द्वारा रचित लिप़ा हे किन्तु यह्द कृति
प्रबोधचन्द्र कूव है। प्ू० १६ में सूरि परम्पराम जिनलब्पिसूरिजी-
नाम छूट गया है ये सं० १४०० के आपाढ झुक्छा १ फो औजिन-
पह्पूरिओीके पाटपर बैठे, ओतरुणप्रभाचार्यने इन्हें सूरि मत्र दिया ॥
इनके रचित एक विद्वत्तापूर्ग स्तोत्र हमारे सम्रहमे है। स० १४०६
में इसका स्वर्गवास हुआ ।
पृ० १४० के फुडनोटमे दिया हुआ स० १६६८ का छेप, हमारे
चरित्र नायकसे प्रतिष्ठित मुर्तिका न होकर आय्पक्षीय औजमिन-
सिंहसूरिफे शिष्य जिनचन्द्र सुरिजी द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाका हैं ।
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