श्री राम चरितमानस की भूमिका | Shri Ram Charit Manas Ki Bhumika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Ram Charit Manas Ki Bhumika by रामदास गौड़ - Ramdas Gaud

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामदास गौड़ - Ramdas Gaud

Add Infomation AboutRamdas Gaud

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
«.. शिक्षा और व्याकरण प्ध 31 यम आल 5 पर 5 तह 505 अप 5 दी तरदसे करते है # तुलसीदासजीके समयमें मिन्न मित्र रीतिसे व्यक्त करते थे | “एप” अक्षर था हो नहीं। सयुक्ताक्षरों्में जय “विष्णु” की जगद “विस्लु” “अछ्टाद्श” की जगह “अस्टादूस” लिखते थे, तय श, प, अन्त स्थकी आवश्यकता द्वी या थी। भाहतोंको साधारण प्रवृत्ति सदासे सादगीकी ओर चली आयी है। भरसक सयुक्ताक्षरोंका प्रयोग घटाना ही सप्रीचीन समता गया है । यही बात जायसी और घुलसीमें भी पायी जाती है। “ज्ञ” के उस्चारणमें सस्ठतमें दी प्रान्तमेंद है। महाराष्ट्रन्‍्दृ” उत्तर-आाग्तीय “ये” और वगाली “गं” भव भी फहते हैं । जायसी और तसुलघीने इसे साफ “ग्य” लिखा हैं| “श” का बहिष्कार हो गया। ध्राह्मतमें यद सर्वधा उचित ही समम्श जाता है। प्रतिशा शब्द पहले “पतिज्रा” फिर “पहना”, फिर “पइज्ञ” शीर अतर्मि बजमापाका “पैज” बन जाता है| * सज्ञान” का पदले “घजञ्नान” फिर “स्थान”? बनता है। “तो कि वरावरि फरइ अयाना! में अयान भी अशानका ही प्राकृत रूप है। इसी तरह “क्ष”का भी प्राकृतर्में बदिप्कार ही समझना घाहिये। “लक्ष्मण” का फही “हकछिमन” और गधिकाश /लपन” हो गया है जो +लूवर्खनका उस्री तरह खुघरा रूप है, जिस तरद्द “लद्मी”का रुप येंगलासे “लक्सा ? भर हिन्द्ीमें ''छपसी” या “रूपी” हो गया है । ६-.शब्दोंके तोडने-मरोडनका दोष घजञ्ञमापाके कवियोंकी समालोचना करते हुए साधा- रणते लोग उन्हें शखोंके तोडने मरोडनेका दोष शगाते हैं। प*न्‍्तु जो उदाधरण देखे गये हैं, उनमेंसे अधिझाश प्रचद्धित आजकल स्कूलोंमें शव ऐ ओर ओऔओका शुद्ध मस्छुत उद्चारण राय चहष्कृत है। बैल और ठोर वाला हो उच्चाग्ण सिसाते ह1 “वओआ वा उच्चारण “क्ठआ नहीं कराते “कओवा कराते _| आधुनिक शिक्षा लीका यह भा एक प्रसाद हे | ले० ञ्




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now