गोरक्षपद्धतिः | Goraksh Paddhati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 है
में दशनाडी स्थानोंसहित, ( १४ ) में दशवायु, ( १० ) में शक्ति-
चालन, ( २६ ) में महाम॒द्राआदि,( ४ ) में प्रणवाभ्यास, ग्राणाया--
मम्रशंसा, (9) में आणायामका अकार) (८) में नाडीशोधन,
इतने विषय पूवेशतकमें- तथा ( २१ ) में प्राणायाम॒का विस्तार;
(३० ) में भत्याहारविधि, ( ९ ) में धारणा, ( २४ ) में ध्यान,
( १३ ) में समाधि, (४ ) में मुक्तितोपान, योगशात्नाभ्यासका
फल इत्तने विषय उत्तरशत्तकर्मे कहे हैं. ऐसी यह गोरक्षपद्धत्ति यो-:
गमागे जाननेवालोंको अतिउत्तम तथा सुगम है. योगमार्गका प्रयो-
जन सभी शाख्तरोंमें पडताहै. विशेषतः संध्या, पूजनआदि द्विजन्मा-
ओके नित्यकमंभी बिना इसके सिद्ध नहीं होते जैसे संध्यामें प्रथम
४ बद्धपञ्मासनों मौनी प्राणायामत्रय॑ चरेत्” तथा पूजनमें “ स्नात;
शुचिः प्राइमुखोपविश्य आणानायम्य ” इत्यादि सर्वत्र विधिवचन
है. यदि योग न जाने तो म्राणायाम पद्मासनआदि कहांसे जाने.
इनके न जाननेसे समस्त संध्यावंद्नादिसाधन निरथक हैं. इस सम-
यमें बहुघा छोक-नाकपर हाथ लगानेझो प्राणायाम समझते हैं. पद्मा--
सनादियोंका तो. नामभी नहीं है. तब कहांसे सिद्धि होवे इसी हेतु
नास्तिककोग असिद्ध तथा पोप (ठग ) आदि निद्यशब्दोंसे अपने
मुखविवरोंको दूषित करते हैं यदि योगाभ्यास करें तो सिद्धि भत्यक्ष
हाकर अपना उद्धार हो तथा दूषकोंके उन विवरोंमें मिट्टी पड़े. और :
योगग्रंथ बहुत तथा कठिन हैं. ये २ शतक थोडेहीमें ज्ञान देते हैं -
इस हैतु मैंने भाषाटीका की है कि सभी सज्जन इसे देख थोडाही _
उ श्पदिष्ट होकर सर्वोर्थताधनयोगमागेकी महिमा जानजायेंगे- पाठ- ,
हक मैने अनेक भतिद्ध योगग्रंथोंसे इसे बढाकर गोरक्ष-
५ 5 पिला: अरे यह अंथ ४ लक्ष्मीचेडूटेम्वर ?” छापेखानेके
अधधकारी-गंगाविष्णु ओऔक्षष्णदासजी को सने इकसहिय शा
पाखानेमें छापकर असिद्ध किया है-
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