गोरक्षपद्धतिः | Goraksh Paddhati

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Goraksh Paddhati by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 है में दशनाडी स्थानोंसहित, ( १४ ) में दशवायु, ( १० ) में शक्ति- चालन, ( २६ ) में महाम॒द्राआदि,( ४ ) में प्रणवाभ्यास, ग्राणाया-- मम्रशंसा, (9) में आणायामका अकार) (८) में नाडीशोधन, इतने विषय पूवेशतकमें- तथा ( २१ ) में प्राणायाम॒का विस्तार; (३० ) में भत्याहारविधि, ( ९ ) में धारणा, ( २४ ) में ध्यान, ( १३ ) में समाधि, (४ ) में मुक्तितोपान, योगशात्नाभ्यासका फल इत्तने विषय उत्तरशत्तकर्मे कहे हैं. ऐसी यह गोरक्षपद्धत्ति यो-: गमागे जाननेवालोंको अतिउत्तम तथा सुगम है. योगमार्गका प्रयो- जन सभी शाख्तरोंमें पडताहै. विशेषतः संध्या, पूजनआदि द्विजन्मा- ओके नित्यकमंभी बिना इसके सिद्ध नहीं होते जैसे संध्यामें प्रथम ४ बद्धपञ्मासनों मौनी प्राणायामत्रय॑ चरेत्‌” तथा पूजनमें “ स्नात; शुचिः प्राइमुखोपविश्य आणानायम्य ” इत्यादि सर्वत्र विधिवचन है. यदि योग न जाने तो म्राणायाम पद्मासनआदि कहांसे जाने. इनके न जाननेसे समस्त संध्यावंद्नादिसाधन निरथक हैं. इस सम- यमें बहुघा छोक-नाकपर हाथ लगानेझो प्राणायाम समझते हैं. पद्मा-- सनादियोंका तो. नामभी नहीं है. तब कहांसे सिद्धि होवे इसी हेतु नास्तिककोग असिद्ध तथा पोप (ठग ) आदि निद्यशब्दोंसे अपने मुखविवरोंको दूषित करते हैं यदि योगाभ्यास करें तो सिद्धि भत्यक्ष हाकर अपना उद्धार हो तथा दूषकोंके उन विवरोंमें मिट्टी पड़े. और : योगग्रंथ बहुत तथा कठिन हैं. ये २ शतक थोडेहीमें ज्ञान देते हैं - इस हैतु मैंने भाषाटीका की है कि सभी सज्जन इसे देख थोडाही _ उ श्पदिष्ट होकर सर्वोर्थताधनयोगमागेकी महिमा जानजायेंगे- पाठ- , हक मैने अनेक भतिद्ध योगग्रंथोंसे इसे बढाकर गोरक्ष- ५ 5 पिला: अरे यह अंथ ४ लक्ष्मीचेडूटेम्वर ?” छापेखानेके अधधकारी-गंगाविष्णु ओऔक्षष्णदासजी को सने इकसहिय शा पाखानेमें छापकर असिद्ध किया है- ज््ज्न्ी




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