बृहदारण्यकोपनिषद | Brihadaranyakopanishad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हा हे ( रह ) विषय परष्ठ २३५, ब्रद्मवेत्ताकी स्थिति ओर याशवस्क्यक्रे अति जनकका आत्मसमर्पण. १११७ २३६. आत्मा अन्नाद और बसुदान है---इस प्रकारकी उपासनाका फछ ११२३ -२३७, ब्रद्मफे खरूप और ब्ह्मशकी स्थितिफा वर्णन ** ११२४ पश्चम ब्राह्मण २३८. याशपत्क्य मैन्ेयी-संवाद *** सह + शश्श्ट २३९. याशवलक्य और उनकी दो त्लियाँ कक ** ११२९ २४०, याशवल्वय मैनेयी-संग्ाद हड *** ११३१ २४१. मैनेयीका अम्ृतत्वताघनविपयक प्रश्न ले || शक २४२. याशवल्क्यजीका सान्तनापूर्वक समाधान *** ** शश्३े२ २४३. प्रियतम आत्माक़े लिये हो सब्र बस्त॒एँ प्रिय होती है ** ११३३ >२४४, भेददृष्टिसे हानि दिखाऊर सब्र कुछ आत्मा ही है? इस तत््वका उपदेश नग्न नग्न *** ११३५ २४९५. सबकों “आत्मा? रूपसे ग्रहण करनेमें दशन्त “** १११६ २४६. निर्विशेष आत्माके विपयमें मैत्रेयीकी शड्ढा और याशवल्क्यक्रा समाधान जा 5 1 >*४ इक २४७, अपदेशका उपसंदार और याशयत्क्यका संन्यास ४ ११४२ पष्ठ ब्राह्मण 7२४८, याशवल्कीय काण्डकी वंश परम्परा शक ** ११६१ पश्चम अध्याय प्रथम चाह्मण १४९, पूर्णब्रह् और उससे उसन्न होनेबाल पूर्ण कार्य + श१६४ २५०. <» ख ब्रह्म और उसकी उपाठनाका बर्णन ** ११७७ द्वितीय प्राह्मण २५१. अजापतिका देव) मनुष्य और असुर तीनोंको एक ही अक्षर ८द? से प्रथकू परथकू दम, दान और दयाका उपदेश + ११८४ हतीय ब्राह्मण “२५२. हृदय ब्रक्षकी उपासना श्र *** ११९२ चतुर्थ ब्राह्मण “१५३, सत्य ब्रह्मकी उपासना 9४ “* ११९६




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