बृहदारण्यकोपनिषद | Brihadaranyakopanishad

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Brihadaranyakopanishad by शंकरभाष्य -Shankarbhashy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २१ ) विषय १८५-वामनेत्रस्थ इन्द्रपत्नी तथा विराटका परिचय और उन दोनोंके संस्ताव; अन्न) प्रावरण एवं मार्गादिका वर्णन १८६-प्राणात्मभूत विद्वान्‌की सर्वात्मकताका वर्णन, जनकको अभयप्राप्त और याशवल्कक्‍्यके प्रति आत्मसमर्पण ही *** तृतीय ब्राह्मण १८७-जनकके पास याशवल्क्यका आना और राजाका पहले प्राप्त किये हुए इच्छानुसार प्रश्नरूप वरके कारण उनसे प्रश्न करना १८८-पुरुषके व्यवद्वारमें उपयोगी पॉच ज्योतियाँ १-आदित्यज्योति हो २-चन्द्रज्योति व्कह *** ३-अश्निज्योति ल्‍ का. ०्भक ००० ४-वाग्ज्योति कक ७ & (७ ० ० ५-आत्मज्योति के ' १८९-आत्माका स्वरूप जे जे १९०-आत्मा जन्म ओर मरणके साथ देह्देन्द्रियरूप पापको ग्रहण ओर त्याग करता है. **'* हे १९१-आत्माके दो स्थानोंका वर्णन | १९२-स्वप्तावस्थार्मे रथादिका अभाब है; इसलिये उस समय आत्मा स्वयं ज्योति है के १०३-स्वप्रसष्टिके विषयमें प्रमाणभूत मन्त्र १९४-स्वप्नस्थानके विषयमें मतभेद और उसके खयंज्योतिष्ठका निश्चय १९५-सुषुप्तिके भोगसे आत्माकी असद्भता अ १९६-सवप्नावस्थाके भोगोसे आत्माकी असड्गभता १९७-जागरित-अवस्थाके भोगोंसे आत्माकोी असज्भता १९८-पुरुषके अवस्थान्तर-सश्चारमें महामत्स्यका दशन्त १९९-सुषुप्ति आत्माका विश्रान्तिस्थान है; इसमें श्येनका दृष्टान्त २००-सप्नदद्यनकी स्थानभूता हवितानाम्री नाडियोका वर्णन २० १-मोक्षका स्वरूप प्रदर्शित करनेमें स्रीसे मिले हुए, पुरुषका दृश्टांन्त २०२-सुषुप्तिस्थ आत्माकी निःसज्ञ और निःशोक स्थितिका वर्णन २० ३-स॒धुप्तिमें खवयंज्योति आत्माकी दृष्टि आदिका अनुभव न होनेमें हेतु २०४-जागरित और स्वप्तमें पुरुषको विशेष शान होनेमें हेतु २०५-सुषुप्तिगत आत्माकी अभिन्न स्थिति प्ष्ठ ८५६९१ ८६४ ८७० ८७९ ८७५ ८७५ ८७६ ८७८ ८९१ ब्लड «०० >> बज ना ९३० ९३५ ९३८ ९४४ ९५० ९५२ ९५६ कि ९६१ ९६८ ९७४ ९५८५ २९९ । ५1 १ ७०3०




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