त्याग का भोग | Tyag Ka Bhog

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Tyag Ka Bhog by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आार। मैंन छुरी-कॉटे से चाप काटते हुए उससे श्ाग्रह भरे स्वर म घीरे से क्हा-- खात्रो उसने छुरी-कॉटा धीरे स हटावर झवग रख दिया भौर हाथ से एक- एव टुवडा साइबर खान लगी | खाती हुई वह सहमी हुई दृश्य से मरी आर हेखती जाती थी । मैंग उस ढाटस बेंधाने वे उद्देश्य म कहा-- बडेन्बड़े टुबडे मुहम डालो । इनत छाट टुकड़ा से कस काम चलगा। भ्रभी ता खाना मंगाया हो नहीं। और मैंन होटल वे नौकर स पूरा 'बोस ले झान के लिये कहा जय खाना झभाया तन वह सक्राच त्याग छुद्ी थी | बड़ी वतबरलुफी बा साथ उसने खाना प्रारम्म कर लिया । स्पष्ट ही बह भूखी थी। ब्वास प्लद पर प्लेट लाता चला गया भौर वह मरी भोर तनिक भी न देखकर” डादू साफ बरतो चनी गयी । मैं बधल 7प्टता निभाने वे लिय उसका साथ दवे वा स्वाप रचता रहा | जब भ्रतिभ वौर क बाद एबं गिलास पानी पीकर उसने प्रपना हाथ एाच लिया तवे मैंन कहा-- प्रभी तुम्ह भौर खाना पड़ेगा । मीठा हिए प्रभी वात है । उफ । बल्त सा चुवी हू। बड़ा भूछ लगी थी, वाबूजी | सच मानिय पिछतव बई टिना से मैं भाघा पट खाकर ही रह जातो थी। बभी बी तो मार स्‍भालस के मैं रात म साना बनाती हा नही भूछी सो जी हू । प्राज भी भगर घाप णाना न सिलाते तो हैं भर जावर विना साय ही सा जाती । पर ब्रापन ध्राज़ वहुत पिला दिया।! जब भीठा डिग झाया तो उसे भी उसने बडी पुर्ती स साप वर लिया । भौर फिर वितपिताबर हम पडा । बोलो- 'सोचता थी कि प्रद पट मे जगह नहीं है । पर वह सद भी मैं था गयी ।' मैंन बहा-- पौर मेंगाऊं ? न ने, न! भव नहीं। भर भगर एग टुबड़ा भी में पाऊंगी ता भर जाऊंगी। वहरर वह दुर्मी पर से उठ खड़ी हुई1 स्वाय




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