श्री हरिवंश - पुराण सरल भाषानुवाद भाग - 1 | Shri Harivansh Puran Saral Bhashanuvad Bhag - 1

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Book Image : श्री हरिवंश - पुराण सरल भाषानुवाद भाग - 1  - Shri Harivansh Puran Saral Bhashanuvad Bhag - 1

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २५ ) टुकड़े वर डालेंगे । एक बार वे अपना मुस फला कर नीपण रुप से चीत्वार बरते हैं और तत्कात रूप बदत कर नृत्य गीत द्वारा साथक के सन को सनन्‍्तोप देने लगते हैं। कुछ ही क्षणों बाद दे प्राणी मुन्दर स्त्री रुप घारण करते साधक के कस्ते पर हाथ रस देते हैं । तदनन्तर हँस-हैंस बातें करते हुए विविध प्रवार के प्रलोगन उपस्यित करत हैं। कुछ देर बाद जैसे दवा को भीख माँगते हुए वे साथक के वैसा पर गिर पड़त हैं. और नाना प्रकार को भाव-मगी के साथ नृत्य करते हुए उसका मन अपनी ओर आइप्ट बरते हैं ।” उपरोक्त वर्णन से प्रकट छोता है कि 'हरिवश' में योग का स्वरूप मुख्यत तत्वों की साथना बरवे उस पर विजय धराप्द करना माना है 1 वर्योकि! यह जगत्‌ पच्र तत्वों का ही विकार अथवा खेव॥ जो तत्वों पर पूर्ष नियन्त्रण रख सफ्ता है, वह निश्चय ही ईश्वरत्व के निकट पढटुंच जायगा, क्योंकि मनुष्यों को ईश्वर बय परिचय उसकी पत्र तवमय रचता के माध्यम से ह्दी मिलता है। “जो साथवः पच दल्वों की माया द्वारा उपस्थित किये गये इसे विध्नों को पुच्छ समझ वर अपने सब्य वी ओर बदले चत्े जाते हैं वे अपि- नाशी ऐश्वर्य प्राप्त करके मिद्ध बने जाने है॥ पर जो योग-मायक रजोगुघ तथा तमोगुण के विकार से उलन्न प्राथिव ऐश में लुमा जाता है उसका योग मार्य से पतन हो जाता है और फ्रि उत्तकी निन्दा का टिकाना नहीं दवा | बारबार अपनी निन्‍्दा सुनकर उससे ऐसी इच्छा होने लगती है वि वह परती में समा जाय । विन्‍्नु बह धौष्र ही नाता प्रकार ये! भौठिय तथा अन्यान्य प्रिपय रूपी रखो की ओर अउशइष्ट हो बाता है और तव समारी मुष्प उसे बलपूर्वक विदोण बर टाउते हैं । योग का लक्ष्य सदैव उच्च ही रहे-- इससे हम सहज ही इस निष्कर्ष पर पंच सकते हैं कि योग एबा बहुत ऊंची और पवित्र दस्नु है और उसका सत्य सर्देव बात्मोत्वर्ष तथा परोपशर ही होना चाहिए । जो लोग ताम्वरिशो री ठरह उसका उययोग सारध-मोहन-वश्ीउरथ जैसी निशष्ट स्वायंपूर्ण क्ियाओं में बसते है अथवा




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