अग्नि पुराण [खण्ड 1] | Agni Purana [Khand 1]

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Agni Purana [Khand 1] by श्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे कर्मज बु्धियुक्ता हिं फल त्यवत्वा मनीपिशः। जन्मबन्ध विनिमु क्ता: पद' गच्छःत्यनामयम्‌ ॥ ( २-५-१ ) “बुद्धियोग ( ज्ञान-योग ) पर प्राहढ़ ज्ञानीजन वर्मो से सम्बन्धित फल को त्याग कर, जम्म-मरण रूप बन्धन से छुटकारा पाकर, निर्दोष (प्रमुत- मय ) को प्राप्त होते हैं ।” इससे प्ागे चल कर उस ध्यान, चिन्तन को दतलाया गया, है जिसको भावना जगत्‌ में हृढ़ कर लेने से मनुष्य शरीर-भाव से हटकर प्रात्म-भाव में स्थित हो सकता है । उसका उद्देइ्य यही है कि साधक प्रत्येक स्थूल प्रोर सूक्ष्म अ्रवस्था से आत्मस्वरूप को प्रंथक्‌ समझ कर सामप्तारिक प्रपच्ो का त्याग करे। इस प्रकार के चिन्तन का एक नमूना देखिये-- * मैं ब्रह्म परज्योति हूँ जो श्रोत्र, त्वक्‌ और चक्षु से रहित हूँ । मैं ब्रह्म-, परज्योति हूँ जो सब प्रकार गम्घ, स्पर्श और शब्द से व्विजित हूँ। मैं ब्रह्मपर- ज्योति हूँ जो प्र एा, झपान, ब्यान, उदान, समान-पाँचों प्राएों से द्जित हूँ । मैं ब्रह्म परज्योति हूँ जो मन, बुद्धि, वित्त और अहद्भार से बडित है « मैं ब्रह्म- पर ज्योति हूँ जी जरा, मरण्, छोक, मोह, भूख प्यास, स्वप्न, सुधुत्ति भ्रादि समरत प्रवस्थाथों से रहित हूँ। मैं प्रद्म परज्श्रोति हैं जो कार्य कारण से विव- जित हूँ। मैं बेवल नित्य, धुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सत्य, भानन्द, भरद्य ब्रह्म है । पर इस प्रकार वी भावना केवल कथन मात्र से हृढ़ नहीं होती न बहू किमी के उपदेश से एकाएक प्राप्त हो सकठी है | पूर्व जन्मो के साधक भौर योग सम्प्त प्पवाद स्वरूप थोड़े से व:क्तियों को छोड़ कर शेप सबको इस प्रवस्था तक पहुँचने के लिये क्रमश: दी अभ्यास फरना पड़ता है। इसोलिये धर्मग्रास्त्रों में देवारापन, पूजा, उपासना, ब्रत, उपवास, छप, तप, वेराग्य, संन्याम आदि बी बनेक विधियाँ बतलाई गई है शिनमें से प्रत्येक मनुष्य अपने रतर के अनुषूंख साधन को प्रहण करके पझात्मोर्क्पं के म.गे पर झग्रत्र ह्दो एडता है प्र्ठ में पद तनश्यिति को प्रप्त कर सकता है। “मग्निपुराए ने




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