में क्या हूं | mein kya huin

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mein kya huin by पंडित श्रीराम शर्मा - Pandit Shriram Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९३ ) इस पुस्तक के श्रगले ध्यायो में आ्नास्म-दश्तेन के लिये जिन सरल साधनों को बताया राधा है उनकी सावना करने से हम उस स्थान तक ऊंचे उठ सकते है जद्दां सांसारिक दुबत्तियों की पहुँच नहीं दो सकती । लव चुराइ न रद्देगो तो जो शेष रद्द लाय चद झज्ञाई दो दोगी । इस प्रकार आत्म दशेन का स्तरभादि£: ज दैवी संपत्ति कों प्रत करना है । आत्म रदरूप को-'अददसाव ऊा-श्रास्यन्ति चिस्गार द्ोते ्टोत्ते रवद्‌ चे यले के समान बन्धन दूर जाते हैं ौर चारमा परमात्मा में जा मिलती हैं। इस सावाथ को जोन कर फ़ई व्यक्ति निराश होंगे और कहेंगे यह तो संन्यासियों का मार्ग टैं जो ईश्वर में लोन दोना चादने हैं परमार्थं साधना करना चाहते हैं उनके लिये हो यह साधन उष. योगी दो सकता है । इसका लाम सेवन पार लोकिक है किन्तु इनारे ज्ञोबन का सारा कार्यकम इडडलौकिक है। हमारा नो दैनिक कार्यक्रम उप पाय, नी रूरी, ज्ञान-संपाद रू, दृच्प उपार्ल स मनोरंजन 'आाद हैं। थोड़ा समय पारलोकिफ कार्यों के लिये निकाल सकने हैं परन्दु अधिकांश जीवन चयां मारी सांसारि या में निद्ित है। इसलिये अपने शधिकांशे जोवन के कार्यक्र में इम इसका क्या लांभ उठा सकेंगे ? । ` उपरोक्त शंका स्वाभाविक है। क्यो कि इसारो विचाराघारा आज कुछ ऐसी उज्ञक गई है कि लौकिक श्रौर रारलौकतिक स्वा्थो के दो दिमाग करने पढ़ते हैं चास्तव में ऐसे कोई दो खेंह नदी दो सकते जो लौकिक है बड़ी पारज्ञो किक है । दोनों एक दुसरे से इतने अधिक बंये हुए हैं जैने पेट और पोठ । फिर इंम पूरी विचारघार। को उलट कर पुस्तक के कल्लेबर को ध्यान रखते टूए नये सिरे से समस्त ही यहीं छावश्य हवा सदा समसते 1 यहां वो इनदा दो कह देना पश्ोप्त होगा कि झारद दशेन, उ्पवदारिक जीइन को सहन वनामे को सरं श्रेष्ठ कज्ञा




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