टूटती इकाइयां | Tutati Ikaiyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : टूटती इकाइयां  - Tutati Ikaiyan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शरद देवड़ा - Sharad Devda

Add Infomation AboutSharad Devda

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मारो रे मुझे भय लगने लगता है कि यह रोग मुझे किसी मुसीवत में ने डाल दे । सरलरजी की हिंसर आँखें ता नाद क समय भी सरा पीछा नहीं छाड़ती । >सी दशा मे मे एम० ए० बी परी गए दती ह औरदषास बर एन पर उसी गत्म बारेन में पदने ल्यती हू जिसमे म स्वय परी थी। साथ ही बह हाम्टह छोडकर एर अलग परट क्राय पर ठ छती हू । इस एक्स पटट मे मे धीर वीर वाटिय करके व्स राग स पीछा छुडा सता है । यद्यपि यहाँ भी जय कभी सीडिया पर चढते उतरत समय ऊपर के पहटवाला काटा चतमा और नीच के गर्टवाली मारे वाँच वी ऐनक देखगी हू ता मर ऊपर फिर वहां जुनून सवार हाते लगता है, इच्छा हाती है एव बार इन वाली ओर मोटी दीवारा का भदकर श्यरी पुतलिया क भीतर झावकर दसू तो कि “नशे दानव किसे गहराइ मे ऊिपे बठे है, शैकिन अपनी पिछगीी दम की याद वर से हस माह पर जावू वर छेती हूँ और बिना उनकी आर दस सीवा अपने रास्त चली जाती हु । सप्तय के सुटीध अन्तराल से जाज जीवन के इस उन्तास साटा चौराह पर पडी होकर पलटती हूं, वा ये अनब जानी आये मझ्े आज भी अपना ओर घरती दिखाइ देती है । हर जाँख वा अपना अठप रण है अपनी अजय टास्थान हूं, लक्नि एक बात *म॒ सब मे समान रूप से दृष्टिगतत हाती है--बह हे वारी तह के प्रति भूख | भूख का यह दानव कभी विकराल जवड निवाल ऊपर ही दिसाई दे जाता है, क्नि अस्सर यहू नीचे पदी मे छिपा बैठा रहता है, और ज्याही पिकार दिखाई देता हैं,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now