टूटती इकाइयां | Tutati Ikaiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मारो रे
मुझे भय लगने लगता है कि यह रोग मुझे किसी मुसीवत में ने डाल दे ।
सरलरजी की हिंसर आँखें ता नाद क समय भी सरा पीछा नहीं छाड़ती ।
>सी दशा मे मे एम० ए० बी परी गए दती ह औरदषास बर एन पर उसी
गत्म बारेन में पदने ल्यती हू जिसमे म स्वय परी थी। साथ ही बह
हाम्टह छोडकर एर अलग परट क्राय पर ठ छती हू ।
इस एक्स पटट मे मे धीर वीर वाटिय करके व्स राग स पीछा छुडा
सता है । यद्यपि यहाँ भी जय कभी सीडिया पर चढते उतरत समय ऊपर
के पहटवाला काटा चतमा और नीच के गर्टवाली मारे वाँच वी ऐनक
देखगी हू ता मर ऊपर फिर वहां जुनून सवार हाते लगता है, इच्छा हाती
है एव बार इन वाली ओर मोटी दीवारा का भदकर श्यरी पुतलिया
क भीतर झावकर दसू तो कि “नशे दानव किसे गहराइ मे ऊिपे बठे है,
शैकिन अपनी पिछगीी दम की याद वर से हस माह पर जावू वर छेती
हूँ और बिना उनकी आर दस सीवा अपने रास्त चली जाती हु ।
सप्तय के सुटीध अन्तराल से जाज जीवन के इस उन्तास साटा
चौराह पर पडी होकर पलटती हूं, वा ये अनब जानी आये मझ्े आज भी
अपना ओर घरती दिखाइ देती है । हर जाँख वा अपना अठप रण है
अपनी अजय टास्थान हूं, लक्नि एक बात *म॒ सब मे समान रूप से दृष्टिगतत
हाती है--बह हे वारी तह के प्रति भूख | भूख का यह दानव कभी
विकराल जवड निवाल ऊपर ही दिसाई दे जाता है, क्नि अस्सर यहू
नीचे पदी मे छिपा बैठा रहता है, और ज्याही पिकार दिखाई देता हैं,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...