तत्त्वार्थसूत्र अर्थात मोक्षशास्त्र सटीक | Tattvarthasutra Arthat Mokshashastra Sateek

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Tattvarthasutra Arthat Mokshashastra Sateek by पन्नालाल साहित्याचार्य - Pannalal Sahityacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ अयम अध्याय चर्तभानम पुतारी कदना और मविष्यतमें राजा होनवाले राजपुत्रको शाता कहना | भायनितेप--कयर वर्तमान पर्यायक्री मुस्यतासे अर्थात्‌ जो बाय जैसा है उमर! उसी रूप कहना सो मावनिक्षेप है। लैसे- काएजे काछ अवम्धाम काठ, आगी होने पर आगी ओर कोबरा दडोजाने पर कोयन्य कहना ॥ ५ | सस्यगदशन -ादि तथा तत्वोझ ज्ञाननंब उपाय-- अमागनयरधिगमः ॥ ६ ॥ अध--सम्पदरन आदि सलत्रेय और जीव आदि ततवोंसा ६ अधिगम ) ज्ञान ( प्रमाणनये ) प्रमाण और नयांस [ मरति ] होता है। प्रशाण--जोे पटाथक स्वेत्गको ग्रटण करे उसे प्रमाण कहते हैं इसफ दो भेद ह। १ प्रत्यभ प्रमाण और २ परोश्ष प्रमाण। आत्मा जिस ज्ञान+ द्वारा किसी गद्य निमित्तकी सायताक विना ही पदार्थोंको स्पष्ट जाने ससे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते है और इड्िय वया प्रशाश्न आन्की सहायतास पदार्थोंकों एक्देश जान उस परक्ष प्रमाण कहत है । नय--तो पदार्थके णक्देशक्ों विषय कर-साने उसे नय कहने है। इसक दो मेद है-१ द्रया्थिक, २ प्यायार्थिक | जो सुस्य रूपसे द्रयका विपय करे उसे द्रव्याथिक ओर जो मुस्य रुपसे अग्रायकी गिपय कर उसे पर्यायाथिक नय कहत हैक) ६॥ा । * इन अग्रावर भर्दोरी व्िवत्रे द्वी खुत्रमे द्विदचनके रथानपर अटुवचनम अयोग किया गया दै। , ,




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