भटकाव | Bhatakav

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Bhatakav by महाश्वेता देवी - Mahashveta Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भटकाव 27 रहती है। दोनो ओर असिधारा के पत्ते पाषिया वे इधर उधर हटन पर उन्हे लहुलुहान करते रहते है देवांदिदेव को इतनी बातें नही मालूम थी। उसने सोचा था कि घर छोडकर बाहर आने म कोई डर नही है! किसी क॑ स्नह की पुकार चर सदा घर लौटा जा सकता है। छुटपन म॑ देवादिदव बहुत भला था । माँ के बुलात ही घर लौट आता । बचपन मे पद्मा नदी के किनारे एक छोटे शहर म॑ उनका घर था । उनके घर व सामने था तपता हुआ मैदान । मंदान के बीच म पतली पगंडडी एसी थी माना उनकी माँ के घन बाला के बीच की माँग हो । संध्या के समय माँ दहलीज पर खडे ज्वोकर पुकारती दबू, घर आा[। देवादिदेव घर लौटना चाहता था। वह क्‍या समझता नही था कि दिन ब दिन वहू किस तरह अरण्यदव बनता जा रहा है ? अवास्तविक ? पहले जीवन कितना सरल था ! तंब दबादिदेव भी औरो की तरह विए्दास करता था कि क्रान्ति आ गयी है। समाजवाद आ गया है। सब कस्यून में रहेगे, जीवन समान हांगा । हर जिले म कम्यून बन गये थ। रगपुर तब सुर्स रगपुर था। सुविनय न बहुत सुन्दर भीत गाया था | रेखा सुन्दर गाठी थी । वह सुविनय वी बहन थी । सुविनय सडक-दुघयना मे सारा गया था। जिसके साथ देवादिदेद ले मार्ग पर चलना शुरू किया था, व सब सर चुके थ। 'साथी ! साथी ! कंधे से बधा मिलाओ' भीत क्मिका लिखा हुआ था? वरुण का । किन्तु वरुण नहीं मरा। वह अब भी लिख रहा है, लिखे जा रहा है। हेसने पर वरुण की दोनो आँखें हमेशा सिकुड जाती थी । लगता कि कोई बहुत छोटा लडका हँस रहा हो । और भी बहुत लोग थे | जुलूसा म देखे चेहरी वी कतार-की-कत्तार, पहुचानी-पहचानी शबक्‍लें | वरुण ने उस दिन उसे देखकर कैसा अपरिचित्त- सा बरताव किया। करते हैं, सभी करते हैं। इसीलिए तो देवादिदेव जान पहचान के लोगो के पास जाते हुए डरता है ॥ नव लोगा के साथ रहना उसे बहुत अच्छा लगता है । एक दार घर लौट सबन पर देवादि- दव फिर वरुण के पास जा सकेगा ६ लेकिन घर लौटना क्या इतना आसान है? अगर सभी-कुछ दूसरो




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