हिन्दी उपन्यास साहित्य का शास्त्रीय विवेचन | Hindi Upanyas Sahity Ka Shastriy Vivechan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १ ) सस्‍्वापित हो गया है । जरपाभारस का महत्य बड़ गया है। जम्म एवं पद के स्थान पर प्रतिमा का सम्मात होले क्षपा है। पर उसकी उचित प्रतिक्विया धाहिष्य में मह्ठी होने पाई । साहित्य में बिशिप्टठा की पुजा पर्रपण के कटबरे में भग भी होती थाती है। जो पमरः में र॒ प्राबे प्रग भी उसे क्लासिक का सम्मान सिल्रठा है। पर इसे बदलता होवा--साबाएण जीवन की गाथा सापारण जीवन को भापा में साधारण समझते बाल भ्यक्तियों के लिए प्रस्तुत करनी होगी । इसी स्थिति में उपस्पास के सहज रूप की प्रतिष्ण होबो । कभी-कमी इतिहास उपन्यास का स्थान लेते का हौसला स्रिए पभ्राये बड़ सबझा है, पर इतिहास की प्रपती एक सीमा है। बह दूत का है । छा हो चुका हैं उसी को गह बता सकता है । उपस्यास में तो जो हो सकता है उसका भ्रामास भौर प्रेरक घक्ति होशों हो रहएी हैं। झाज करा धंसार--ठसके प्रग्गु जम बायुयात आायरलेस--उभी तो एच० जी» भेख्स ऐसे उपष्याप्त बृत्ति के जती मैलकों की सूर में प्रकट होता है। सूझ की पैद्े कविता में कम्पना के बेव से कितनी है क्यों रू बढ़ाई जाय पर छरइ-बन्यन उन्हें न हो प्राकाश छूते देता है भौर सर प्रणिक समय तक पृष्जी के: डी मिकट रहूने देता है। इतिहास में सूछ छट॒हऐं के प्रंबेर स्जड़-शाजड़ में हो रास्ता टटोसती रहती है पर उपस्पोग बृत्ति में सूझ का जिस्तार पृप्णी पर छ्षदिज के बिस्तार से होड़ संता हप्ा इश्चाप्ड को प्रात्मसात्‌ कर लेते का हौसला रता है| छपन्पास का प्रारम्म मनुष्य कौ चेतता के प्रारम्भ से हुप्रा । शाएबत भत्य दो मांति लपम्याप-दृत्ति सब कार्सों में प्रलुष्ए रही--भसे ही बारप की बार्ल करम्पा कौ भाँति उसके ड्सरी या प्रषुरे शात हारा उसके प्रथम भगतरण के छमप लोगों मे रसबा डचित मूल्या|ंझत सर कर पाया हो पर इतते छमय के प्रन्वर पर उपन्यास का घहुण छौन्दर्प भ्पते बास्‍स्तविक यौरद के साग बन- साधाएए पर प्रग्ट हो इका है भौर उसका बिस्ठार तभा महत्व जीवन के बिस्हार ठपा उसके महत्व के साथ मिप्त पया है। दस के साहित्य के प्रस््पज तुस्प पस्पृ्श्डस्बरूप ले भ्राज के पमिष्ठ गर्ग गौ ध्रशिजातबर्मीय स्पिमि प्रास कर सीहै। एक बात धौर मो है । समाज में सबको घपनी स्थिति का सम्मान प्राप्त हो बढ़ा है। सिशांत रुप में पूर्सत” एवं स्पावह्वारिक झप में प्रपात” भाज का हरियन मन्दिर अवेश




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