द्रव्यगुणविज्ञानमः | Dravyagunvigyaanam Part-i

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Dravyagunvigyaanam Part-i by बालकृष्ण शर्मा - Balkrishn Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छठ निवेद्न ऋणी हूँ । मुझे आशा है कि द्॒व्यगुणविज्ञानका यह पूर्वाध, इस अन्धके उत्तराधमें औषधद्व्य और आहार्व्योंके पारिभाविकशब्दोंमें सक्षेपसे लिखे हुए शुण-कर्मोको सोपपत्तिक समझनेमें विशेष उपयोगी होगा । इस प्रन्थकी संकलना इस विषयके अध्यापक तथा उच्च ( आयुर्वेदाचार्य ), मध्यम ( आयुर्वेदविशारद ) और निम्न ( मिषक्‌ ) श्रेणीके विद्यार्थी सवको उपयुक्त दो इस इृष्टिसे की गयी है । हिन्दीमें दिया सारांश विशेष करके 'भिषक्‌? श्रेणीके विद्यार्थियोंके तथा इस विषयके सस्कृतानभिज्ञ अन्य जिज्ञासुओंके लिए है। अध्यापकोंको भ्रन्थके प्रारम्भमें दिया हुआ भारतीय द्॒व्यगुणविज्ञानका दिग्दशन करानेवाला उपोद्धात तथा परिक्षिष्ट २ में दिया हुआ आयुर्वेदिक तथा आधुनिक द्र॒व्यगुणविज्ञानपर तुलनात्मक विचार यह निवन्ध प्रथम देख छेना चाहिए । प्रन्थकी असकापी तैयार करने, हिन्दी अनुवाद करने और प्रूफ देखनेमें मेरे प्रिय विष्य श्रीरणजितराय आयुर्वेदालड्जारने बड़ी सहायता दी है। अत. मैं उनको धन्यवाद देता हूँ। भ्न्थके सकलन करने, भाषानुवाद करने और छपवानेके विषयमें बने इतना यत् किया है। तथापि अनवधानता, अमाद आदिके कारण अनेक न्ुटिया रहना सभव है। यदि विद्वह्कण इन न्ुटियोंको लिख सेजनेका कष्ट करेंगे तो अगले सस्करणमें -उनको सुधारनेका यत्न किया जायगा। पूर्वाधके प्रथम सस्करण की ५०० प्रतियाँ छपवाई थीं। परन्तु एक सालमें सब पतियों नि शेष हो जानेसे और लोगोंकी ओरसे इसकी विशेष माँग रहनेसे उत्तराभ्धक् ओषधद्गव्यविज्ञानखण्डके उपवानेका कार्य रोक कर पूर्वा्धका यह दूसरा सस्करण तैयार किया है। इस सस्करणमें प्रथम संस्करणमें रह गये हुए कई विषय बढ़ा दिये गये हैं और व्याख्या अन्थोंसे कुछ पुनरुक्तियोँ निकाल दी गई हैं । इस अन्धको _ युक्तप्रान्तके बोड ऑफ्‌ इन्डियन मेडिसिनने पाव्यपुस्तकतया खीकृति दी है। 1 ता, १०-११-१९४५ | निवेदक ' डा, विगास स्ट्वीट, वैद्य द चंचई ने. २. थ जादवजी च्िकमजी आचाये।




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