बोधिचर्यावतार | Bodhi Charyawatar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७) आत्मभाववृद्धि
(८) भोगवृद्धि
(९) पुण्य वरद्धि
बोधिचर्यावतार
करने से पुण्य-शद्धि होती है। [कारिका २१ उत्तराध॑]
लेने बाले बहुत है । देने के लिए यह छोटा सा आत्स-
भाव । इससे बनेगा क्या? किसी की पूरी तृप्ति नहीं होगी।
इसलिए इसे बढ़ाना होगा । बल ओर अनालल्स्य का बढ़ाना
ही आत्मभाव की वद्धि है । [कारिका २२-२३ पृव्र्धि]
एन्यतादृष्टि तथा करुणाचित्त द्वारा दान करने से भोग-
वृद्धि होती है। (कारिका २३ उत्तरा्ध )
आरंभ से ही दृइ संकल्प और दुइ चित्त से करुणाभाव को
आगे करके पुण्य-बुद्धि करनी चाहिए। श्रद्धा सहित भद्ग चर्या-
विधि करनी चाहिए। वबंदसा, पापदेशना, पुण्यानमोदना और
अध्येषणा का नाम भद्गचर्या है । श्रद्धा, वीये,स्म॒ति, समाधि
ओर प्रज्ञा बलों का अभ्यास करना चाहिए। चारों ब्रहभ-
बिहारों की भावना करनी चाहिए। बुद्धानुस्मृति, धर्मानु-
स्मृति संघानुस्मति, त्यागानुस्मुति, शीलानस्मृति और
देवानुर्समृति रखनी चाहिए। सब अवस्थाओं में निरामिष
धर्मंदान और बोधिचित्त पुण्यवृद्धि के कारण हैँ। चार सम्यक
प्रहाणों द्वारा प्रमाद न करने से, स्मृति और संप्रजन्य तथा
गंभीर चिन्तन से मनृष्य को सिद्धि प्राप्त होती है।
(कारिका २४--२७ )
बोधिचर्पावतार
शिक्षा समुच्चय तथा बोधिचर्यावत्तार का विषय एक ही है। भेद निरूपण शेलौ
में है। बिना काव्य का प्रयत्न किये ही आचार्य ने उसे धर्म का काव्य बना दिया
है। इसके अतिरिक्त बोधिचर्यावतार तथा शिक्षासमच्चय दोनों ही एक दूसरे के
अं
पूरक भी हे। शून्यवाद का प्रतिपादन बोधिचर्यावततार में है पर शिक्षासमुच्चय में
उसका नाम-कोतेन मात्र है। शिक्षासमुच्चय सुत्रों के उद्धरणों से विपुल ग्रन्थ हो
गया है पर बोधिचर्यावतार में सूत्रों का यत्र-तत्र संकेत ही है। समूचा बोधिचर्यावतार
नो सो तेरह इलोकों में परिनिष्ठित हुआ है। जिसका विरणयों है --
प्रथम परिच्छेद
द्वितीय
तृतीय
चतुर्थ
पंचस
घष्ठ
सप्तम
अष्टस
नवस
दशस
४
बोधिचित्तानुशंसा इलोक-संख्या ३६
पापदेशना फ् ३६
बोधिचित्तपरियग्रह )१ ३३
बोधिचित्ताप्रमाद हा ४८
संप्रजन्यरक्षण के १०९
क्षान्तिपारमसिता हि १३४
वीयेपारमिता शी ७५
ध्यानपारभसिता )१ १८६
प्रशापारमसिता हि १६८
परिणामना !! ५८
१७७७७७७७७७|
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