अश्रु - वीणा | Ashru - Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
871 KB
कुल पष्ठ :
79
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शह)
आज का शुम दिन कित्रना धन्य है। कृषिकार ने नवनेद को देखा कि व॑ह
विद्युतजकाश से समस्त दिशाओं को आलोकित करता हुआ, अपनी धाराओं से
भूमि को सींच रहा है। बहुत दिनों से जो दुष्ट ताप भूमि में हिपा हुआ था, जात
वह जोर से गरम आह छोड़ता हुआ अपनी अन्तिम सांसें गिन रहा हो--ऐसा
प्रतीत होता है।
( १२ )
राज्य-मूश होने पर मेरी समस्त कल्पनाएँ निवतिवश दुर्घल हो चली थीं, आज
वे मानी विशद शरीर का निर्माण कर रही हैं। जिस कुट्ित-साग्य ने मुझे (चन्दन
बाला को) उपेक्षित कर रखा था, वह में समरसलीन मगवान् द्वारा आज अनावात्
ही सनाथ कर दी गई हूँ
६ ९३) !।
जिसकी समस्त सायत्ति ने विपत्ति में अपना निविरोध विलय कर दिया
दढ़ अद्धालु को परीक्षा क्या आज की इस पुष्यौदय की वेला में भी अवशिष्ट है?
भगवन् ! आज यह चम्दमवाला प्रकृति कृपण अर्किचन व्यक्ति जैसी स्थिति में है।
उससे भक्ति को हीं अपैज्षा की जा सकती है। प्रषास करने के अतिरिक्त उस
विनीत (चन्दनवाला) के पास है सी वया ?
(१४)
भगवन् ! सहिला-जगत् की आशाओं के आग एक अपूर्व केन्द्र-स्थान हैं ।
महिलाएँ आपसे अपनी शक्ति का सही भान पा जीवन में सफल होंगी। श्ु
(ात्तानीक) के कामोन्मत रथिक ने मेरी साता के साथ बलात्कार करना चाह, तब
एसने ( माता ने ) अपनी जीम सोच कर अपने प्रा्णों की आहुति दे दी और साथ
ही उस रथिक की अन्तर को आंखें सोल दौं-एसे सत्यथ पर ले आई। उस
समय मैरी साता के लिए आप ही प्रकाशन-स्ताम वने थे! ।
१--चन्दनवाला के पिता, अम्पा नगरी के राजा दृधिवाहन के साथ कौशास्बी के राजा
झतानीक ने जब ऋड़ाई ढेढ़ी. तब राजा दृधिवाहन युद-खछ को छोहकर वन को
ओर भाग निकछा । पीछे से झदानीक के सैनिक रंगर को छट़ने के छिए अन्दर
गए। एक रथिक राजभवन से चन्दूनवाछा और उसकी मांदा थारिणी को रथ में
विठाकर बन की ओर चल पढ़ा । मांग सें उसके बलात्कार से अपने शीछ की रक्षा
के लिए धारिणी से अपनी जीम खोंचकर आधान्त कर दिया।
आधिमीए
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