स्वास्थ्य विज्ञान | Svasthy Vigyan

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Svasthy Vigyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लायु दर दृष्टि से व्थथ होते हूं। इसलिए इसको प्राणवायु * कहते हैं। यह वायु भी रंग, स्वाद तथा गंघ से विरदित है । जैसे जीवन के छिए यह नितान्त आवश्यक हे वेसे ही जठन के लिए भी, क्योंकि ये दोनों कम वास्तव में एक ही हैं, एक दारीर के भीतर होता है और दूसरा शरीर के चाहर होता है। जलाने के गुण के कारण इसको 'जारक' भी कदते हैं । जीवन भर उवलन के लिए इसकी जितनी सात्रा भावश्यक होती है उससे बहुत अधिक मात्रा वातावरण में रक्खी गयी है । इस लिए मकानों मे, इसकी कमी के दुप्परिणाम स्वास्थ्य पर नही हो सकते है। अनुभव से यदद अज्ुसान किया गया है कि स्वास्थ्य पर दुष्परिणाम होने के लिए जारक की मात्रा २२-१५% तक कम होनी चाहिए । जब इसकी मात्रा ७9% से कम होती है तव मनुष्य वेहोश होने ठगता है । प्रजारक ( 0८००७ )--यह चायु जारक का ही अपरात्रतिक ( 10000 ) योग है और इसका च्यूहाणु ( 20०16०पा० ) दे परमाणुओं का (05) अर्थात्‌ जारक से १ अधिक परमाणु का बना हैं । इसका रंग किंचित्‌ नीलाभ है और अपनी चविदोष प्रकार की गंध से यह पहचाना जाता है । कृत्रिम रीत्या विद्युत-प्रवाह द्वारा यह बनाया जाता है । प्रकृति में यह वायु भाकाश से वज्जापात से तथा जहाँ चढे पेमाने पर पानी की भाप होती है वहाँ पेदा होता है । इसछिए पर्वतीय स्थानों, समुद्र के पृष्ठ भागों और किनारों पर वहुतायत से पाया जाता है । वायुमण्डछ में इसकी राशि चहुत्त कम (संभवतः १००० भाग में 9 साग) होती है । यह चायु बहुत जारणकर्ता ( 051075008 शर्ट ) है, इसलिए जब सेंद्रिय पदार्थों के साथ इसका संवंध आता है तब तुरन्त उनको जारित कर डालता हैं। शहरों तथा घनी चस्तियों में; जहाँ हवा में सेद्रिय पदार्थ बहुतायत से पाये जाते हैं वहाँ यह वायु नही पाया जाता । पानी की शुद्धि करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है क्योंकि यह जीवाणुनाशक भी है । आगे पानी की शुद्धि देखिए । घ्रा० दट्रिजारेय (0५0८ ) -इसको प्रागारिक अम्ल वायु (७#९0००010 8010. छु85 ) भी कहते हैं । यह निगघ; रंग-रहित तथा खट्टे स्वादुवाला है । दवा के सब घटकों की अपेक्षा यह वजनदार है । इसलिए यह कसी-कभी गहरे परन्तु १. नासिस्थः प्राणपवनः स्पृष्ठा हृत्कमलातरम्‌ । कठादूवद्दिविनियांनिं पाठ विष्णुपदासतम्‌ ॥ पीत्वा चावरपीयूष॑ पुनरायाति वेगतः । कि प्रीणयनू देइमखिल जीवयज्ठरानलमभ्‌ ॥ शाइंपर ॥




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