श्री भाष्य भाग - 2 | Shri Bhashya Bhag - 2

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Shri Bhashya Bhag - 2  by ललितकृष्ण गोस्वामी - Lalitakrishn Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६१५ ) जो यह वहा क्िि- स्थूल सूक्ष््मामक जडचेतनमय जगत परमात्मा का शरीर हो ही नहीं सकता, यह कथन, वेदान्तशास्त्र के सम्यक्‌ ज्ञान न होने से मनः कल्पित कुतके का फल है ! सारे हो वेदांतशास्त्र स्थूल सुक्ष्म चेतन अचेतन समस्त को परमात्मा का शरीर बतलाते हैं । वाजसेनयी काण्व और माध्यंदिन शाखा के अन्तर्यामी ब्राह्मण में जैसे-“जो पृथ्वी में स्थित हैं पृथ्वी जिनका शरीर है” इत्यादि से पृथिव्यादि समस्त अचिद्‌ वस्तु तथा “जो विज्ञान में स्थित है विज्ञान जिनका शरीर है” “जो आत्मा में स्थित हैं आत्मा जिनका शरीर है” इत्यादि से चेतन वस्तुओं का पृथक--पृथक निर्देश करके, उनको परमात्मा का शरीर बतलाया गया है। सुबालोपनिषद में भी इसी प्रकार “जो पृथ्वी में संच- रण करते हैं, पृथ्वी जिनका शरीर है” तथा “जो आत्मा में संचरण करते हैं, आत्मा जिनका शरीर है” इत्यादि में उसी प्रकार चिदचिद की समस्त पभवस्थाओं को परमात्मा का शरीर बतलाकर “वह सर्वान्तर्यामी निष्पाप दिव्य देव एक नारायण हैं इत्यादि से उन परमात्मा को मभूतों का अन्‍्तर्याम्री बतलाया गया है। स्मरन्ति च “जगत्सवँ शरीरं ते यदम्बुवैष्णवंकाय:” “तत्सवं वै हरेस्तनु/” तानिसर्वाणि तदवपु: “सो$भिध्याय शरीरा- स्वात्‌” इत्यादि । भूतसूक्ष्मत्वात्स्वाच्छरीरादित्यथं:। लोके शरीर शब्दों घटादिशब्दबदेकाकारद्रव्यनियतत पृत्तिमनासादितः कृमिकीटपतंगसपैनरपशुप्रभृतिष्वत्यंत विलक्षणाकारेपु द्रव्येष्वगोणः प्रवुज्यमानों दृश्यते। तेन तप््य प्रवृत्तिनिभित व्यवस्था- पन॑ सवे प्रयोगानुगुएयेनैव कार्यम्‌ त्वदुक्त च “'कमंफलभोगहैतुः” इत्यादिक॑ प्रवृत्तिनिमित्त लक्षण न स्व प्रयोगानुगुणम्‌, यथोक्त ष्वी- श्वर शरोरतयाशमिहितेषु पृथिव्यादिष्वव्याप्ते: “सारा जगत तुम्हारा ही शरीर है, जल विष्णु का घरोर है” यह सब हरि का शरोर है। “उन्होने संकल्प करके अपने शरीर से” द॒त्यादि स्सृति वाक्य भी उक्त तथ्य की पुष्टि करते हैं । लोक में शरौर शब्द, घर आदि शब्दों की तरह, अनेक प्रकार के द्वब्य संघातमय, इुमि-कीढ-




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