हम विषपायी जनम के | Ham Vishapayi Janam Ke
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
686
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वयालीसवें वर्षान्त मे
(अभि दाक्षा कारू म )
पूछा सन्ध्या ने आज के 1
हम शोक मनाये या कि हुप॑ ?
तुम आज कर रहे हो पूरे
चालीस और दो अधिक वप,
यहू बयाकछीसवा वपष आज
अस्तगत रवि के साथ चला,
चोौलो, किन भावों को छेकर
आयेगी करू ऊपा चपला,
जीवन के इतने वर्ष बने
धुंधली स्मृतियों के पुज रुप,
है कवि । क्या देखो हो इनमे
तुम कुछ कुछ अपनापन अनूप ?
मेंते अवलोका सान्ध्य क्षितिज,
मैंने अवलोका अपने को,
इतने वत्सर पूरे करते,
देखा जीवन के सपने को,
हो चला कालिमा से मण्डित
सन्ध्या-नभ जो था छाल लाल,
पर दिददूमण्डल पर दिखा पुण-
निशिपति हँसता उच्चत, विशाल,
हस विषपाया जनम के
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